वसंत की दस्तक
वसंत की दस्तक के साथ
खिलते फूल
कुनमुनी धूप की चादर लपेटे
गर्माते पेड़
नीली झील में खिलते
सफ़ेद और लाल कमल के पत्तों पर
झलकती शबनमी बूँदें
फूलों का आलिंगन भर लेने को
तड़पता पानी
और पतझड़ी जंगल में
वसंत का ठहाका
क्या यह सब प्रेम है ?
शाम देर तलक
किसी की याद में डूबी आँखें
किसी से मिलने का निमंत्रण
फूलों की पँखुड़ियों का
परत दर परत टूटना
दूर क्षितिज में डूबता सूरज
मेरी आँखों में उतर गया
और वसंत सरे आम
मेरी उंगलिओं से फिसल गया
क्या यह सब प्रेम है ?
हाँ , यह सब प्रेम है
लेकिन
दर्द की यह अंतहीन नदी भी तो
प्रेम ही है
दर्द की इस अंतहीन नदी में
तैरकर ही
पार करने है हमें सब प्रेम पुल
इसकी लहरों के स्पंदन से ही
धड़कता रहता है हमारा ज़ख़्मी दिल
और भिगोने को हमारी आत्मा
देखो प्रिय
कितना आतुर है ये प्रेम जल ।
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