Saturday, June 29, 2024

वसंत की दस्तक

 वसंत की दस्तक 


वसंत की दस्तक के साथ 

खिलते फूल 

कुनमुनी  धूप की चादर लपेटे 

गर्माते पेड़ 


नीली झील में खिलते 

सफ़ेद और लाल कमल के पत्तों पर 

झलकती शबनमी बूँदें 


फूलों का आलिंगन भर लेने को 

तड़पता पानी 

और पतझड़ी जंगल में 

वसंत  का ठहाका 


क्या यह सब प्रेम है ?


शाम देर तलक 

किसी की याद में डूबी आँखें 

किसी से मिलने का निमंत्रण 

फूलों की पँखुड़ियों का 

परत दर परत टूटना 


दूर क्षितिज में डूबता सूरज 

मेरी आँखों में उतर गया 

और वसंत सरे आम 

मेरी उंगलिओं से फिसल गया 


क्या यह सब प्रेम है ?

हाँ , यह सब प्रेम है 


लेकिन 

दर्द की यह अंतहीन नदी  भी तो 

प्रेम ही है 

दर्द की इस अंतहीन नदी में

 तैरकर ही 

पार करने है हमें सब प्रेम पुल


इसकी लहरों के स्पंदन से ही 

धड़कता रहता है हमारा ज़ख़्मी दिल 


और भिगोने को हमारी आत्मा 

देखो प्रिय 

कितना आतुर है ये प्रेम जल । 

 


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