Saturday, June 29, 2024

प्रेम पंछी

 प्रेम पंछी 


जब प्रेम रीत जाता है 

तो परिंदा का सोने का घर  भी 

उसके लिए पिंजरा बन जाता है 


शबनम की बूँदें  भी 

शोला बन जाती है 

हृदय की प्रेम कलियाँ 

भी मुरझा जाती हैं


और नदी की लहरें 

आग की लपटों में

 तब्दील हो जाती हैं 


पहाड़ों से उतरती 

सूरज की किरणें भी 

मन के अँधेरों को दूर नहीं कर पाती 


तारों का टूटा साज़ 

गाता हैं दर्दीले गीत 

रात  भर दिल को चाँदनी  जलाती



वसंत दबे पाँव 

लांघ जाता हैं प्रीत की दहलीज़

और पतझड़ 

एक अपरिचित अतिथि की तरह 

पसर जाता हैं आत्मा में 


आसमान से टपकती 

आग भरी बूँदों से 

चटक जाते हैं 

प्रीत के शीशें

और उन किरचों में उभर आता हैं 

एक वीरान टूटा ताजमहल 


नदी की लहरें भी गाती हैं

 उदासी भरा गीत 

किश्तियाँ किनारों पर 

तोड़ देती हैं दम

और बोझिल किनारे गातें हैं 

शोकगीत 


खजुराहों की प्रेम प्रतिमाएं भी 

तब्दील हो जाती हैं 

खालिस संवेदनहीन पत्थरों   में 

भूका प्यासा प्रेम का पंछी 

अंततः तोड़ देता हैं दम


लेकिन उसकी आत्मा 

फिर भी नहीं मरती 

उसकी आत्मा ओढ़ लेती हैं 

एक और प्रेम का लिबास 

और एक बार फिर से 

प्रेम पंछी निकल पड़ता हैं 

प्रेम की अनंत यात्रा पर ।







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