प्रेम पंछी
जब प्रेम रीत जाता है
तो परिंदा का सोने का घर भी
उसके लिए पिंजरा बन जाता है
शबनम की बूँदें भी
शोला बन जाती है
हृदय की प्रेम कलियाँ
भी मुरझा जाती हैं
और नदी की लहरें
आग की लपटों में
तब्दील हो जाती हैं
पहाड़ों से उतरती
सूरज की किरणें भी
मन के अँधेरों को दूर नहीं कर पाती
तारों का टूटा साज़
गाता हैं दर्दीले गीत
रात भर दिल को चाँदनी जलाती
वसंत दबे पाँव
लांघ जाता हैं प्रीत की दहलीज़
और पतझड़
एक अपरिचित अतिथि की तरह
पसर जाता हैं आत्मा में
आसमान से टपकती
आग भरी बूँदों से
चटक जाते हैं
प्रीत के शीशें
और उन किरचों में उभर आता हैं
एक वीरान टूटा ताजमहल
नदी की लहरें भी गाती हैं
उदासी भरा गीत
किश्तियाँ किनारों पर
तोड़ देती हैं दम
और बोझिल किनारे गातें हैं
शोकगीत
खजुराहों की प्रेम प्रतिमाएं भी
तब्दील हो जाती हैं
खालिस संवेदनहीन पत्थरों में
भूका प्यासा प्रेम का पंछी
अंततः तोड़ देता हैं दम
लेकिन उसकी आत्मा
फिर भी नहीं मरती
उसकी आत्मा ओढ़ लेती हैं
एक और प्रेम का लिबास
और एक बार फिर से
प्रेम पंछी निकल पड़ता हैं
प्रेम की अनंत यात्रा पर ।
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