सन्नाटा
मेरी आत्मा में पसरी
बर्फ़ की एक नदी
पिघलने लगती है और
बर्फ़ से उठता धुआँ
फ़ैल जाता है मेरी रगों में,
मैं तब्दील हो जाता हूँ
एक ब्रह्मनाद में
इस ब्रह्मनाद का संगीत
कोई सुन नहीं पाता,
संगीत के सुर
बदलते है बेतरतीब करवटे
मेरी आत्मा में ,
प्रेम की पीड़ा से
जलती है मेरी आत्मा,
रात दिन
इस पीड़ा की रौशनी से
जगमगा उठती है मेरी आत्मा
मैं धीरे धीरे बुनता हूँ
सन्नाटे के तार,
मुझे प्रतीक्षा है
एक ऐसे सन्नाटे की
जो मेरी आत्मा में
सदा सदा के लिए
लीन हो जाये।
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