प्रेम पत्र
अब नहीं लिखती तुम मुझे प्रेम पत्र
और ना ही मधुर शब्द
बदल गया है तुम्हारा प्रेम
जैसी बदलती है ये धरती
आकाश , नदी ,पहाड़ और पेड़
वैसे ही बदलता है प्रेम भी
अब मेरे गीत
तुम्हारी आत्मा के साज़ को नहीं छेड़ते
अब मेरे प्रेम चित्र
तुम्हारी आत्मा के कैन्वस पर नहीं उभरते
अब कोई भी वसंत
तुम्हारी आत्मा के फूलों को नहीं महकाता
अब कोई भी सुर
हमारे प्रेम राग को नहीं गाता
एक अनंत पतझड़ी जंगल
मेरी आत्मा में पसर गया है
और आज तुम्हे प्रेम पत्र में
" प्रिय " मधुर शब्द न लिख कर
मैं उदास हूँ
लकिन ख़ुश भी हूँ यह जानकर
कि प्रेम में अब हम बराबर हैं ।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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