Saturday, June 29, 2024

प्रेम पत्र

 प्रेम पत्र


अब नहीं लिखती तुम मुझे प्रेम पत्र

और ना   ही मधुर शब्द 

बदल गया है तुम्हारा प्रेम 

जैसी बदलती है ये धरती 

आकाश , नदी ,पहाड़ और पेड़ 

वैसे ही बदलता है प्रेम भी 

अब मेरे गीत 

तुम्हारी आत्मा के साज़ को नहीं छेड़ते 

अब मेरे प्रेम चित्र 

तुम्हारी आत्मा के कैन्वस पर नहीं उभरते 

अब कोई भी वसंत 

तुम्हारी आत्मा के फूलों को नहीं महकाता

अब कोई भी सुर 

हमारे प्रेम राग को नहीं गाता

एक अनंत पतझड़ी जंगल 

मेरी आत्मा में पसर गया है 

और आज तुम्हे प्रेम  पत्र में 

" प्रिय  " मधुर शब्द न लिख कर

मैं उदास हूँ

लकिन ख़ुश  भी हूँ यह जानकर 

कि प्रेम में अब हम   बराबर हैं  ।


कवि - इन्दुकांत आंगिरस  



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