सीढ़ियों का संगीत
आज
एक क़दम सीढ़ी चढ़ता हूँ
तो दिल दरक जाता है
एक ज़माना था जब मैं
अपने तिमंज़ले मकान की
५२ सीढ़ियाँ
५२ सेकण्ड्स से कम समय में
चढ़ जाता था
और
उन्हीं सीढ़ियों से उतरने में
लगता था पहले से भी कम वक़्त
ज़िंदगी में
कितनी ही सीढ़ियों पर
चढ़ा , उतरा
लेकिन उन ५२ सीढ़ियों पर
चढ़ते - उतरते
मेरे नन्हें पैरों की
थाप का संगीत
जितना कर्णप्रिय
और लयात्मक था
वैसा नहीं सुना कभी।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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