माँ तेरे रूप अनेक
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता
हूँ दुआ भी साथ चलती है
- मुनव्वर राना
मशहूर शाइर मुन्नवर राना के उपरोक्त शे'र में शाइर कहता है कि अभी उसकी माँ ज़िंदा है और उसकी दुआएं उसके साथ हैं । ये तो पुरानी कहावत है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत निकलती है। मुन्नवर राना के इस शे'र के बाबत मैं कहना चाहुंगा कि माँ कि दुआएं सिर्फ उसके जीते जी ही नहीं बल्कि उसके मरने के बाद भी मिलती हैं। माँ जन्नत में पहुँच कर भी अपने बच्चों को नहीं भूलती और हमेशा उनकी ख़ुशी के लिए ईश्वर से इबादत करती है। अगर इबादत से भी काम न चले तो अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए एक माँ ईश्वर से भी लड़ बैठती है। ये कहना तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि माँ , ईश्वर का ही दूसरा रूप है। जिस तरह सम्पूर्ण सृष्टि पर ईश्वर अपनी नज़र बनाये रहता है , उसी तरह माँ भी अपने बच्चों को हमेशा अपनी नज़रों में छुपाये रखती हैं। इसीलिए एक माँ सिर्फ माँ होती है , अक्सर ईश्वर से भी बढ़ कर माँ सिर्फ माँ होती है और एक माँ की जगह ईश्वर भी नहीं ले सकता।
इससे पूर्व कि हम माँ के विभिन्न रूपों के बारे में बात करें हमारे
लिए यह जानना आवशयक हो जाता है कि माँ शब्द
की उत्पत्ति कब और कहाँ से हुई है। मैथुनी
सृष्टि का आरम्भ मनु और शतरूपा द्वार
किया गया। हिन्दू मान्यता के अनुसार शतरूपा
संसार की प्रथम स्त्री थी और मनु की पत्नी। मनु की संतान को जन्म डेन वाली स्त्री शतरूपा
को माँ कहा गया। हिन्दू धर्म में यह भी मान्यता
है कि गाय का बछड़ा / बछिया जब जन्म लेता है
तो अपने रम्भाने में सबसे पहले माँ का स्वर
निकालता है।
संसार की विभिन्न
भाषाओँ में माँ के लिए अलग अलग शब्द ज़रूर हैं लेकिन उनमे एक समरसता देखने को मिलती
है। संस्कृत भाषा में माँ के लिए " मातृ " शब्द है , अंग्रेजी में ' Mother ' , लेटिन भाषा में ' Mater ' , लिथुआनियाई भाषा में ' Motina , चेख भाषा में ' Matka ' , स्लॉवेनियन भाषा में ' Mati ' , जर्मन भाषा में ' Mutter ' , फ्रेंच भाषा में ' Mere ' , ग्रीक भाषा में '
Μητέρα ( मितेरा ) , स्पैनिश और इतालियन भाषा में ' Madre ' रूसी भाषा में ' Mama ' और ' мать
" , फ़ारसी भाषा में ' मादर ' बल्गेरियाई भाषा में ' Майка '
( माइका )। अम्मा ,आई , महतारी , मामा , ताई ,मम्मी कुछ ऐसे प्रचलित शब्द हैं जोकि भारत में आम बोल
चाल में प्रयोग में आते हैं। अगर हम उपरोक्त शब्दों का ध्यान से अवलोकन करें तो ये बात स्पष्ट हो जाती हैं कि दुनिया कि दीगर भाषाओँ
में " माँ " शब्द मिलता जुलता है और अधिकांश भाषाओँ में माँ शब्द '
म ' अक्षर से
आरम्भ होते हैं ।
जिस तरह इस संसार
में माँ के विभिन्न नामों में एक समरसता होती है उसी तरह माँ की संवेदनाओं में भी उसी
प्रकार की समरसता और एकरूपता देखी जा सकती हैं। मसलन धरती पर किसी भी राष्ट्र में अपने
बच्चों के प्रति माँ की संवेदना एक जैसी हो
सकती है। किसी बालक / बालिका के रोने पर माँ का दुखी होना , उसके बच्चों की पीड़ा उसकी अपनी पीड़ा बन जाती है , उसके बच्चों का सुख उसकी अपनी ख़ुशी बन जाती हैं। कोई भी माँ यह कभी नहीं चाहेगी कि उसके बच्चें उन्नति
के पथ पर आगे न बढे , बल्कि उनके विकास के लिए वह अपना तन , मन धन सब कुछ न्योछावर कर देती है। इस
सिलसिले में भीष्म साहनी की कहानी '
चीफ़ की दावत ' का ज़िक्र यहाँ सार्थक होगा। शामनाथ अपने घर में अपने चीफ़ की दावत करता है। उसे और उसकी पत्नी को डर है कि चीफ़ ने अगर उसकी अनपढ़ बूढी गंवार माँ को देख
लिया तो वह उसके बारे में ग़लत धारणा बना लेंगे। जब चीफ़ की उसकी माँ को देख कर ख़ुश हो जाते है और फुलकारी बनाने की फरमाइश कर बैठते
है। माँ की आँखें कमज़ोर हो चुकी हैं लेकिन
अपने बेटे के उज्जवल
भविष्य के लिए वह मुस्कुराती हुई चीफ़ के लिए नई फुलकारी बनाने के लिए तैयार
हो जाती है। इस कहानी में हम देखते हैं कि माँ अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए सब कुछ निस्वार्थ
कर सकती है जबकि बच्चों में माँ के प्रति अक्सर वैसा सेवा भाव देखने को नहीं मिलता। यह कड़वा सत्य तो किस से छिपा ही नहीं है कि आजकल
वृद्धा आश्रमों कि संख्या बढ़ती जा रही है और उनमे रहने वाली माताओं की भी।
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
जी हाँ , आज के युग में जिसे हम कलियुग भी बोलते है , माँ को भी कई हिस्सों में बाँट दिया गया है। प्रसिद्ध शाइर मुन्नवर राना का उपरोक्त शे'र इस बात को दर्शाता है कि माँ को हिस्सों में तो बाँटा गया लेकिन शाइर इस बात से ख़ुश है कि उसके हिस्से में उसकी माँ आ गई है। समाज में हमे माँ के अनेक रूप देखने को मिलते है। वास्तव में माँ बनने की प्रक्रिया ही अपने आप में अनूठी होती है। एक स्त्री पहले किसी पुरुष से विवाह करती है ( हालां कि माँ बनने के लिए विवाह करना ज़रूरी नहीं ) उसके बाद वह बच्चें जनती है । उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ यही पर ख़त्म नहीं होती , अब उसे बच्चों का पालन पोषण करना पड़ता है। बच्चों में प्यार बँट जाने से पति देव नाराज़ हो सकते है और यहां भी सब कुछ उस माँ को ही संभालना होता है। हर माँ की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह अपने बच्चों के लालन पालन में कोई कमी न आने दें और अपने बच्चों को अपने सामर्थ्य से भी अधिक प्रदान करे।
माँ के अनेक रूपों में से धरती भी माँ का ही एक रूप है। हम जिस धरती पर रहते हैं वह धरती हमारी माँ समान होती है। धरती अपने करोड़ों बच्चों कि प्रताड़नाएं सहने के बाद भी अपने बच्चों का नुक़सान नहीं करती। हम सभी धरती माँ को तरह तरह से प्रताड़ित करते हैं लेकिन माँ सब कुछ सह कर भी मुस्कुराती रहती है।
सनातनी हिन्दू धर्म
में गाय को भी माता का रूप माना गया है। गाय की सेवा और दर्शन करने से ही सौभाग्य प्राप्त
होता है। हिन्दू धर्म की मान्यता की अनुसार गाय में ३३ कोटि देवी - देवताओं का वास
होता है। माँ तो आखिर माँ होती है फिर चाहे
वह इंसान की माँ या जानवर की। गाय जब अपने बछड़े को जन्म देती है तो अपने बच्चे को वह
स्वयं ही अपनी ज़बान से चाट कर साफ़ कर देती है।
प्रकृति की इससे अधिक सहज और सरल घटना क्या हो सकती है। प्रेमचंद के '
गोदान ' उपन्यास में गाय की महत्ता को अत्यंत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया
गया है। भारतीय जन जीवन की संस्कृति में गाय
एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
माँ का एक रूप जन्मदात्री का होता है तो दूसरा रूप पालनहार का भी होता है। जन्म देने वाली स्त्री तो माँ होती ही है लेकिन
अगर किसी कारण से उस बच्चे का पालन पोषण कोई दूसरी स्त्री करती है तो वह भी माँ ही
कहलाती है। मथुरा के कारागार में देवकी ने
कृष्ण का जन्म दिया लेकिन वहां पर कृष्ण के प्राणों का भय था इसलिए उसी रात कृष्ण के पिता वासुदेव
उन्हें गोकुल में यशोदा के घर छोड़ आये थे। कृष्ण का लालन पोषण माँ यशोदा ने ही किया था। यशोदा
के माँ के इस रूप को कई कवियों की रचनाओं में
देखा जा सकता है। महाभारत में कुंती की पीड़ा को कौन नहीं जानता। अपने ही पुत्रों की
जान की भीख मांगने के लिए उसे अपने ज्येष्ठ पुत्र कर्ण के पास जाना पड़ता है जिसे उन्होंने
अपने विवाह से पहले जन्म दिया था और सामाजिक लोक लाज के भय से एक नदी में बहा दिया था।
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली का उपरोक्त शे'र पढ़ते ही माँ और रसोई आँखों के आगे तैर जाती है। वास्तविकता तो ये है कि माँ के बिना घर के चूल्हें नहीं जलते। माँ के हाथों से बने पकवान जैसा स्वाद फाइव स्टार होटलों के भोजन में भी नहीं मिलता। माँ का घर की रसोई से एक गहरा रिश्ता होता है और यह रिश्ता वह ताउम्र ख़ुशी ख़ुशी निभाती है। रसोई के साथ साथ घर की साफ़ सफ़ाई। हर चीज़ को करीने से रखने का जुनून। घर को घर बनाने वाली माँ सिर्फ माँ नहीं , बहुत कुछ होती है सब की ज़िंदगी में। दिन भर घर को सजाने के लिए चकरी की तरह घूमती रहती है। वास्तव में माँ सिर्फ माँ के रूप में ही नहीं बल्कि कभी बीवी , कभी बेटी , कभी बहन , कभी पड़ोसन के रूप में भी मिलती है हमें। बक़ौल निदा फ़ाज़ली -
बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ
आज सम्पूर्ण विश्व
में Mothers ' Day मनाया जाता है। Mothers ' Day तो हर क्षण मनाना चाहिए। माँ तो जननी है , उसकी ममता और प्रेम तो कण कण में देखा जा सकता है। माँ तो
ममता ,प्रेम , त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति होती है। उसका हृदय
कोमल होता है और उसकी संवेदनाएं प्रेम से परिपूर्ण।
माँ को अपनी संतान से प्यारा कोई नहीं। उसकी संतान ही उसक आँख का तारा , प्यार भरा दुलारा होता है। लेकिन कई बार जीवन में
ऐसे भी मोड़ आते है जब इन आँखों के तारों को अपने राष्ट्र की रक्षा करने के लिए अपने
प्राणों की आहुति देनी पड़ती है। वतन की शान में क़ुर्बान होना पड़ता है। क्रांतिकारी भगत सिंह भारत की
आज़ादी के लिए फांसी के तख्ते पर झूल गए।
भगत सिंह ने अपनी माँ से कहा कि वो उसकी मौत पर आंसू न बहाये क्योंकि वह अपनी क़ुर्बानी भारत माता के
लिए दे रहा है। वक़्त पड़ने पर भारत की माताओं ने अपने पुत्रों का बिलदान भी दिया है। ज़रूरत पड़ने पर कोमल माँ शक्ति का अवतार भी ले लेती है और इस दुनिया से ज़ुल्म
को मिटाने के लिए चंडी का रूप भी धारण कर सकती है। इसलिए अगर माँ फूल है तो पत्थर भी है , अगर आग है तो पानी भी है। माँ के रूप अनेक हैं , माँ सिर्फ कोमल कविता नहीं यथार्थ की कहानी भी है।
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