Monday, July 1, 2024

तन्हाई

 तन्हाई 



मैं मुसलसल   ख़ामोश  तन्हाई हूँ 

उजड़े हुए ख़्वाबों की शहनाई  हूँ  


सब  अनलिखा  पढ़ लेता हूँ 

सब  अनकहा  सुन लेता हूँ 

जो  फूल  तुम्हें  छू जाते हैं 

उन फूलों को चुन लेता हूँ 

सन्नाटों  को  बुन  लेता हूँ 


मैं एक कली  का खिलता  सपना हूँ 

मैं एक  कली का  बिखरा लम्हा  हूँ 


पानी  में  सब पढ़ लेता हूँ 

मिटटी से सब गढ़ लेता हूँ 

जो गंध तुम्हें छू कर आये 

उसे साँसों में भर लेता हूँ 

सन्नाटों  से  मढ़  लेता हूँ 


मैं एक नदी में  डूबा   कतरा हूँ 

मैं एक नदी से बिछड़ा  कतरा हूँ 

जो ग़म कुछ साथ कल जायें 

जो ग़म कुछ आज मिल जायें 

कहीं तेरी फ़ुरक़त की आग में 

रूह मेरी कहीं न जल जायें 


मैं एक सदी का गुज़रा लम्हा हूँ 

मैं  एक सदी से तन्हा तन्हा हूँ 


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