तन्हाई
मैं मुसलसल ख़ामोश तन्हाई हूँ
उजड़े हुए ख़्वाबों की शहनाई हूँ
सब अनलिखा पढ़ लेता हूँ
सब अनकहा सुन लेता हूँ
जो फूल तुम्हें छू जाते हैं
उन फूलों को चुन लेता हूँ
सन्नाटों को बुन लेता हूँ
मैं एक कली का खिलता सपना हूँ
मैं एक कली का बिखरा लम्हा हूँ
पानी में सब पढ़ लेता हूँ
मिटटी से सब गढ़ लेता हूँ
जो गंध तुम्हें छू कर आये
उसे साँसों में भर लेता हूँ
सन्नाटों से मढ़ लेता हूँ
मैं एक नदी में डूबा कतरा हूँ
मैं एक नदी से बिछड़ा कतरा हूँ
जो ग़म कुछ साथ कल जायें
जो ग़म कुछ आज मिल जायें
कहीं तेरी फ़ुरक़त की आग में
रूह मेरी कहीं न जल जायें
मैं एक सदी का गुज़रा लम्हा हूँ
मैं एक सदी से तन्हा तन्हा हूँ
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