बहुत दिन हुए
बहुत दिन हुए
कोई प्रेम कविता नहीं लिखी
बहुत दिन हुए
इस दिल की कली नहीं खिली
बहुत दिन हुए
वसंत गुनगुनाया नहीं
बहुत दिन हुए
प्रीतम खिलखिलाया नहीं
बहुत दिन हुए
चाँदनी में नहाये हुए
बहुत दिन हुए
चाँद को बुलाये हुए
बहुत दिन हुए
तुम याद नहीं आये
बहुत दिन हुए
बिछड़े तुम्हारे साये
बहुत दिन हुए
मिलन की रात न आयी
बहुत दिन हुए
तारों की बरात न आयी
क्या यही प्रेम कविता है ?
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