पतंग
बहुत दिनों से
नहीं लिखी कोई कविता
बहुत दिनों से
मेरा मन नहीं रीता
आख़िर याद आ गयी
बचपन की एक शाम
था पतंगों से भरा आसमान
लेकिन मैं लेता था पलंग पर
लपेटे अपनी बाजू पर प्लास्टर
मेरी पतंग मेरे पलंग के नीचे
फड़फड़ा रही थी
आकाश में उड़ती
रंग - बिरंगी पतंगें
मुझे रह रह कर बुला रही थीं
एक पतंग उड़ रही थी आकाश में
और एक मेरे मन के भीतर ,
मैंने लेते लेते करवट ली
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