Friday, July 19, 2024

फ़्लैश बैक - गाजर का हलुआ

 गाजर का हलुआ 


दिल्ली कि सर्दियों में 

अक्सर बनाती थी मेरी नानी 

गाजर का हलुआ 

घिसनी  पड़ती थी हमें 

बहुत साड़ी गाजरें  

फिर लगभग  २- ३ घंटों तक  

पकाया जाता था हलुआ 

अंगीठी की धीमी  आँच में 

और फिर 

मिलता था खाने को 

गरम गरम गाजर का हलुआ 

एक निश्चित मिकदाऱ में 

रोज़ नाश्ते में मिलता था 

गाजर का हलुआ 

पर नियत नहीं भरती थी ,

नानी अक्सर किस बड़े पात्र में 

हलुआ छापा कर रख देती थी  

और दोपहर में 

जब सो जाती थी नानी 

मैं अक्सर ढूँढ निकालता था 

हलुए का वो पात्र 

और इस सफाई से करता था साफ़ 

५०-१०० ग्राम हलुआ 

कि नानी को पता न चले 

लेकिन आज तक समझ नहीं पाया 

कि नाश्ते मैं देते वक़्त हलुआ मुझे 

क्यों धीरे से मुस्कुराती थी नानी ? 




कवि - इन्दुकांत आंगिरस  


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