ताँगा
घर से स्कूल तक का
ताँगे का सफ़र
होता था बहुत दिलचस्प
एक दिन मैं देर तलक
खेलता रहा स्कूल में
तो छूट गया ताँगा
बहुत देर तक मायूस
खड़ा रहा था सड़क किनारे
फिर मांगी थी लिफ़्ट
एक साइकिल सवार अंकल से
उन्होंने बिठया था मुझे
साइकिल के सामने वाले डंडे पर
और सही सलामत छोड़ा था
मुझे तुर्कमान गेट तक
वह से पैदल लौट गया था अपने घर
उस दिन मेरी नानी ने
बहुत डांटा था मुझे
देर से घर पहुँचने के लिए
मैंने नहीं बताया उन्हें कि
छूट गया था मेरा ताँगा
बल्कि कह दिया था उन से कि
ताँगा आया देर से क्योंकि
घोड़े को था बुखार
अगले दिन मुझे
चढ़ गया था बुखार।
सीढ़ियों का संगीत
आज
एक क़दम सीढ़ी चढ़ता हूँ
तो दिल दरक जाता है
एक ज़माना था जब मैं
अपने तिमंज़ले मकान की
५२ सीढ़ियाँ
५२ सेकण्ड्स से कम समय में
चढ़ जाता था
और
उन्हीं सीढ़ियों से उतरने में
लगता था पहले से भी कम वक़्त
ज़िंदगी में
कितनी ही सीढ़ियों पर
चढ़ा , उतरा
लेकिन उन ५२ सीढ़ियों पर
चढ़ते - उतरते
मेरे नन्हें पैरों की
थाप का संगीत
जितना कर्णप्रिय
और लयात्मक था
वैसा नहीं सुना कभी।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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