Tuesday, July 2, 2024

प्रेम - गीत

 

प्रेम - गीत

 

, कि तेरे इन्तिज़ार में दिल डूबता ही जाता है

सेने का ग़म सांझ के इक तारे - सा थरथराता  है 

 

रात है कि गहराती ही चली जाती है

ज़िंदगी  सन्नाटों  का  गीत  गाती है

अभी गुज़रा है इक कारवां फ़लक से 

बिछड़ी साँसों की डोर टूटती जाती है

 

, कि उस रहगुज़र से फिर  कोई हमे बुलाता है

गुज़रें हुए   लम्हों   का तन्हा    साज़ गुनगुनाता है 

 

राग है कि बल खता ही चला जाता है

साज़ दुःख का हर गीत गुनगुनाता है

टूटा है शायद कोई तारा फ़लक से

चाँद अपनी क़िस्मत पे आंसू बहता है

 

,कि गुज़रे बचपन का लम्हा हमें बुलाता है

पलकों   की छाँव में  एक दीप  जगमगाता है

 

आग है कि फैलती ही चली जाती है

प्रेम कि जलन दिल में उतर जाती है

बिछड़ा है फिर कोई  अपने से यहां

ज़िंदगी अब मैयतो का गीत गाती है

 

, कि टूटे साज़ का नग़मा हमें बुलाता है

साँसों की डोर में एक गीत कसमसाता है

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