तबस्सुम की लकीर
हँसते हँसते तेरी आँख नम क्यों हो गयी
वो तबस्सुम की लकीर कम क्यों हो गयी
मैंने तो बस जीने की दुआएँ मांगी थी
ज़िंदगी काटने को सज़ाएँ मांगी थी
मैंने मांगी नहीं तुझ से तेरी ख़ुशियाँ
तेरे गेसू ए ख़म से हवाएं मांगी थी
बढ़ते बढ़ते तेरे क़दम ठहर क्यों गए
आंसू तेरी पलकों से उतर क्यों गए
मैंने तो सपनों के चाँद गाँव मांगे थे
बिछुओं में बिंधे बस दो पाँव मांगे थे
मैंने कब मांगी थी तुझ से तेरी रातें
सहरा में कुछ क़तरा ए छाँव मांगे थे
बहते बहते तेरा लहू जम क्यों गया
धड़कता तेरा दिल थम क्यों गया
मुझे दीवाना बना के कहा गुम हो गयी
मुझे अफसाना बन के कहा गुम हो गयी
ज़िंदगी तेरे बिना भी कट तो सकती थी
मुझे सफीना बना के कहा गुम हो गयी
कहते कहते तेरी ज़बान रुक क्यों गयी
उठते उठते तेरी कमान झुक क्यों गयी
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