Tuesday, July 2, 2024

तबस्सुम की लकीर

 तबस्सुम की लकीर 


हँसते हँसते तेरी आँख नम क्यों हो गयी 

वो तबस्सुम की लकीर कम क्यों हो गयी 


मैंने तो बस जीने की दुआएँ मांगी थी 

ज़िंदगी काटने को   सज़ाएँ  मांगी थी 

मैंने मांगी नहीं तुझ से तेरी ख़ुशियाँ

तेरे गेसू ए ख़म से  हवाएं मांगी थी  


बढ़ते बढ़ते तेरे क़दम ठहर क्यों गए 

आंसू तेरी पलकों से उतर क्यों गए 


मैंने तो  सपनों के चाँद गाँव मांगे थे 

बिछुओं में बिंधे बस दो पाँव मांगे थे 

मैंने कब मांगी थी तुझ से तेरी रातें 

सहरा में कुछ क़तरा ए छाँव मांगे थे  


बहते बहते तेरा लहू जम क्यों गया 

धड़कता तेरा  दिल थम क्यों गया 


मुझे दीवाना बना के कहा गुम हो गयी 

मुझे अफसाना बन के कहा गुम हो गयी 

ज़िंदगी तेरे बिना भी कट तो सकती थी 

मुझे सफीना बना के कहा गुम हो गयी  


कहते कहते तेरी ज़बान रुक क्यों गयी 

उठते उठते तेरी कमान झुक क्यों गयी 


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