खुले हैं मन के द्वार , उस पार चले आना
रोकेगी मझदार , पर तुम यार चले आना
सपनों के काँवर में रंग नये भर जाना तुम
धरती की पलकों पे गीत नया रच जाना तुम
शबनम के कतरो पे आग नयी धर जाना तुम
मधुर मधुर है प्यार , उस पार चले आना
खुले हैं मन के द्वार......
साँसों की सरगम से राग नया रच जाना तुम
किशना की मुरली सा साज़ नया बन जाना तुम
मीरा के गीतों का राज़ नया समझाना तुम
मीरा का मनुहार , उस पार चले आना
खुले हैं मन के द्वार......
चाँदी के पंखों से तार नये बुन जाना तुम
साँसों की किरणों से फूल नये चुन लाना तुम
अधरों की किसमिस से कर देना मस्ताना तुम
प्रीत का बंदनहार , उस पार चले आना
खुले हैं मन के द्वार......
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
वाह, मधुर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद भूपेंद्र भाई
ReplyDelete