घर जलाओ नहीं दुश्मनी के लिए
इक ज़रूरत है घर आदमी के लिए
यार तुझ सा नहीं फिर मिलेगा मुझे
दुश्मनी भी तेरी दोस्ती के लिए
हर ख़ुशी तो मिली ज़िंदगी में मगर
ज़िंदगी न मिली ज़िंदगी के लिए
झिलमिलाते हुए कुमकुमों को न गिन
इक दिया है बहुत रौशनी के लिए
इश्क़ मुझको नहीं ज़िंदगी से मगर
ज़िंदगी है मेरी बंदगी के लिए
कारवाँ भी गया , हमसफ़र भी गए
वक़्त रुकता नहीं है किसी के लिए
आइना तो सबब पूछता है ' बशर '
बन संवर के न चल हर किसी के लिए
शाइर - बशर देहलवी
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