Wednesday, November 16, 2022

ग़ज़ल - फिर दिल से उठी लपटें घर को न जला लेना

 फिर दिल से उठी लपटें घर को न जला लेना 

बेहतर है यही इन को दिल ही में दबा लेना 


जब भी तू कभी चाहे जब दिल में तेरे आए

इस पार बुला लेना , उस पार बुला लेना 


है तेरे सिवा    किसका अंदाज़े बयां ऐसा 

इक बात बता देना , इक बात छुपा लेना 


मुमकिन है कि फिर तुझको वो शख़्स न मिल पाए 

बढ़ के तू     गले    उस को इक    बार लगा लेना 


इस दौर    के लोगो ने    सीखा   है हुनर कैसा 

ख़ुद अपनी ही लाशों पे इक दुनिया बसा लेना 


बुझती है अगर शम्मा बुझने दे ' बशर ' उसको 

इन ग़म के अंधेरों से इस दिल को जला लेना 





शाइर - बशर देहलवी  


No comments:

Post a Comment