अब एक फूल भी उगता नहीं निगाहों में
बबूल इतने कोई बो गया है राहों में
लिखूँ भी कैसे हथेली पे दास्तां अपनी
हैं लफ़्ज़ डूबे हुए सब के सब गुनाहों में
कहे किसे कि वो क़ातिल है और लुटेरा है
हर एक शख़्स मसीहा है क़त्लगाहों में
इसे तो और कही जा कर तुम तलाश करो
स्कूने दिल न मिलेगा किसी की चाहो में
कहाँ वो ताब रही दिल में अब ' बशर ' बाक़ी
समेट लूँ मैं जहाँ भर को अपनी बाँहों में
शाइर - बशर देहलवी
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