फाइलातुन मुफाइलुन फैलुन
2122 1212 22
बह्रे ख़फ़ीफ
दिल लगाना भी बेमज़ा निकला
बावफ़ा जो था बेवफ़ा निकला
जो समुन्दर दिखाई देता था
एक पानी का बुलबुला निकला
मौत की राह में भटकने को
किसकी साँसों का काफ़िला निकला
उनकी तिरछी निगाह का जादू
हैरतों से भरा हुआ निकला
जिस तरफ़ भी बढे क़दम अपने
तेरे घर का ही रास्ता निकला
कब सहारा दिया ज़माने ने
अज़्मे दिल ही मेरा ख़ुदा निकला
जितना जो ख़ुश है देखने में ' रसिक '
उसका उतना ही ग़म सिवा निकला
शाइर - रसिक देहलवी
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