Tuesday, November 15, 2022

ग़ज़ल - दिल लगाना भी बेमज़ा निकला

 

दिल लगाना भी बेमज़ा निकला 

बावफ़ा जो था बेवफ़ा  निकला 


जो समुन्दर      दिखाई देता था 

एक पानी का  बुलबुला निकला  


मौत       की राह में    भटकने  को 

किसकी साँसों का काफ़िला निकला 


उनकी तिरछी निगाह का जादू 

हैरतों    से भरा     हुआ निकला 


जिस तरफ़ भी बढे क़दम अपने 

तेरे  घर का     ही रास्ता निकला 


कब    सहारा      दिया ज़माने ने 

अज़्मे दिल ही मेरा ख़ुदा निकला 


 जितना जो ख़ुश है देखने में ' बशर '

उसका उतना ही ग़म सिवा निकला  



 शाइर - बशर देहलवी 


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