Friday, November 4, 2022

ग़ज़ल - तीर जितने चले रक़ीबों के

 तीर   जितने   चले   रक़ीबों के 

दिल में जा कर चुभे हबीबों  के 


हम ही ढोते रहे  सलीब मगर 

हम ही वारिस नहीं सलीबों के 


हम भिखारी किसे कहे यारों 

सब है राजा  यहाँ नसीबों के 


आप तो सिर्फ़ इक  सहारा थे 

बन गए कब ख़ुदा ग़रीबों के 


आज घर घर में हैं अदीब ' बशर '

कौन घर  जाये   अब अदीबों के  



शाइर - बशर देहलवी 

No comments:

Post a Comment