मुझे ग़म में डूबी कहानी बहुत है
मगर आँसुओं से सुनानी बहुत है
समुन्दर न दरिया मगर इस ज़मी पर
मैं पानी हूँ मुझको रवानी बहुत है
जमा भी करूँ कैसे मैं बिखरे ख़तों को
मुझे एक भूली निशानी बहुत है
जला तो दिया है चिराग़ों को हर सू
मगर रात काली तूफ़ानी बहुत है
उठाने को दुनिया के लुत्फ़ों करम सब
' बशर ' चार दिन की जवानी बहुत है
शाइर - बशर देहलवी
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