Thursday, November 17, 2022

ग़ज़ल - इस बज़ाहिर तीरगी से दोस्त घबराना नहीं

 


इस बज़ाहिर तीरगी से दोस्त घबराना नहीं 

इस के पीछे रौशनी है तुम ने पहचाना नहीं 

 

अजनबी   हूँ दो घडी   रहने दो अपने शहर में 

जानता हूँ इस तरफ़ फिर लौट कर आना नहीं 


तश्नगी होटों पे ले कर घूमता हूँ दर - ब - दर 

और मीलों तक नज़र में कोई मयख़ाना नहीं 


हर किसी के साथ हो लेता हूँ अपना जान कर 

और जो कह लो मुझे लेकिन मैं दीवाना नहीं 


ज़िंदगी के साये में पलता रहा फिर भी ' बशर '

ज़िंदगी   भर ज़िंदगी  को मैंने पहचाना नहीं 




शाइर - बशर देहलवी  



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