Thursday, November 10, 2022

गीत - सह ले जो हर चुभन ,वो हृदय कहाँ से लाऊँ

 


      गीत 


सह ले जो हर चुभन ,वो हृदय कहाँ  से  लाऊँ 

कह दे जो हर कथन, वो समय कहाँ  से लाऊँ 


बन बन कर यूँ समय से टूटा हूँ कभी मैं

शीशा  भी मैं  नहीं हूँ  पत्थर  भी नहीं मैं 


चुन ले जो हर सुमन ,वो नयन कहाँ  से  लाऊँ 

बुन  दे जो हर कफ़न, वो वसन कहाँ  से  लाऊँ 


जल जल के यूँ चिता में ,बुझता हूँ कभी मैं 

शोला भी में नहीं हूँ ,  शबनम भी  नहीं  मैं


बुन  ले जो हर सपन, वो नज़र कहाँ  से  लाऊँ 

सह ले जो हर दमन ,वो उदर कहाँ  से  लाऊँ 


गिन गिन के यूँ सपन भी ,जगता हूँ कभी मैं 

जीवित भी मैं  नहीं हूँ ,  मरता  भी  नहीं  मैं। 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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