जेबकतरा
सूरज चौंधिया रहा था और बस -स्टैंड पर शेड भी नदारद। लोग पसीने में नहाये बस की इन्तिज़ार में खड़े थे। जैसे ही बस आई , भीड़ का एक रेला बस में घुसने के लिए उमड़ पड़ा। धक्का -मुक्की में लोग चढ़ कम पाएँ और बस चल पड़ी। पायदान पर लटके लोग बस में खड़े यात्रियों पर भीतर घुसने के लिए चिल्ला रहे थे। अभी एक - दो स्टॉप ही गुज़रे थे कि एकाएक किसी की चीख़ गूँज उठी- " हाय रे , मैं तो लुट गया , किस ने मेरी जेब काट ली है। अरे , अरे , पकड़ो उसे ! वो देखो वो बस से कूद कर भाग रहा है , अरे , कोई पकड़ो उसे , यह तो वही भला आदमी है। "
-" भला आदमी कौन बाबा ? " किसी ने पूछा।
- अरे भाई , वो ही भला इंसान जिसने बस स्टॉप पर मुझे धूप से बचाने के लिए अपने छाते में आश्रय दिया था।
बाबा का जवाब सुन कर सभी यात्री हतप्रभ थे।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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