Thursday, November 17, 2022

लघुकथा - जेबकतरा


जेबकतरा 

 

सूरज  चौंधिया रहा था और बस -स्टैंड पर शेड भी नदारद। लोग पसीने  में नहाये बस की इन्तिज़ार में खड़े थे।  जैसे ही बस आई , भीड़ का एक रेला बस में घुसने के लिए उमड़ पड़ा।  धक्का -मुक्की में लोग चढ़ कम पाएँ  और  बस चल पड़ी। पायदान पर लटके लोग बस में खड़े यात्रियों पर भीतर घुसने के लिए चिल्ला रहे थे।  अभी एक - दो स्टॉप ही गुज़रे थे कि एकाएक किसी की चीख़ गूँज उठी- " हाय रे , मैं तो लुट गया , किस ने मेरी जेब काट ली है।  अरे , अरे , पकड़ो उसे ! वो देखो वो बस से कूद कर भाग रहा है , अरे , कोई पकड़ो उसे , यह तो वही भला आदमी है। "


-" भला आदमी कौन बाबा ? " किसी ने पूछा। 


- अरे भाई , वो ही भला इंसान जिसने बस स्टॉप पर मुझे धूप से बचाने के लिए अपने छाते में आश्रय दिया था। 


बाबा का जवाब  सुन कर सभी यात्री हतप्रभ थे।





लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 


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