ये ज़मी तो हैं ज़मी , वो आस्मां हिल जाएगा
दिल का भूले से कभी जो आबला छिल जाएगा
फूल ही फिर तो जहां में हर तरफ़ खिल जाएँगे
फूल सा चेहरा कभी जो आपका खिल जाएगा
आएगी फसलें बहारां जब कभी ऐ दोस्तों
चाक इस दिल का गरेबां देखना सिल जाएगा
कब तलक बैठे रहोगे मंज़िलों का ग़म लिए
ढूंढ़ने निकलोगे जब भी रास्ता मिल जाएगा
तीरगी ही तीरगी छा जाएगी चारों तरफ़
रौशनी दे कर जहां को जब मेरा दिल जाएगा
मिल गए जो वो 'बशर' कल फिर मुझे इस राह में
अजनबी दिल को मेरे इक आशना मिल जाएगा
शाइर - बशर देहलवी
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