Monday, November 7, 2022

गीत - अपनी ही साँसों से मुझे इक गीत चुराना है

 

गीत 


अपनी ही   साँसों से मुझे   इक गीत चुराना है 

सूनी इन राहों पे मुझे   इक दीप जलाना है 


कल शायद न मिल पाऊँ दुनिया के मेले में 

पर याद बहुत आऊँगा तुमको मैं अकेले में 

इक बात मेरी सुन लो , इक बात मेरी गुन लो 

कौन बिछड़ कर मिलता है दुनिया के मेले में


इन गीतों से ग़म का ,तो रिश्ता ये  पुराना है 

अपनी ही   साँसों से ....


मन बिखरा तन बिखरा , बिखरे जीवन के सपने 

हर    शख़्स लगा है अब   तो ख़ुद अपने से डरने 

सबका मैं आघात सहूँ ,किस से  दिल की बात कहूँ

अपनों   में   बेगाने    निकले     बेगानों   में अपने 

 

ग़ैरों को ही अब तो मुझे ये  राज़  सुनाना है 

अपनी ही   साँसों से ....


मेरे इस सूने मन में इक मीत रहा करता था 

अक्सर दिल की बात मुझसे वो कहा करता था 

अब तो वो भी रूठ गया , जैसे सपना टूट गया 

अश्क मेरी आँखों से , जो रोज़ बहा करता था 


अपने इन अश्कों से मुझे इक दाग़ मिटाना है 

अपनी ही   साँसों से ....



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 





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