Wednesday, November 16, 2022

ग़ज़ल - तीरगी का सफ़र इक परी चाहिए

 तीरगी का सफ़र , इक परी  चाहिए 

जगमगाती   हुई ,  रौशनी  चाहिए 


दोस्ती भी भली , दुश्मनी भी भली 

हम फकीरों को बस , बंदगी चाहिए 


फूल बन कर खिलूँ  , मैं हरिक साँस में

साँस को   प्रेम की ,   रागिनी चाहिए 


बात सुनने में लगती है कैसी अजब 

ज़िंदगी के लिए  ,  ज़िंदगी चाहिए  


भीड़ है तो ख़ुदाओं कि हर सू  मगर 

आदमी को यहाँ  ,आदमी  चाहिए  


उठ रहा है धुआं , हर नज़र से यहाँ 

हर नज़र को मगर,  चाँदनी चाहिए 


नफ़रतों को मिटा , दे जो दिल से ' रसिक  '

आज दिल   को वही  , सादगी चाहिए 



शाइर - रसिक देहलवी  



आबलों का सफ़र और घायल जिगर 

चाँदनी    में ढली इक नदी चाहिए 



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