तीरगी का सफ़र , इक परी चाहिए
जगमगाती हुई , रौशनी चाहिए
दोस्ती भी भली , दुश्मनी भी भली
हम फकीरों को बस , बंदगी चाहिए
फूल बन कर खिलूँ , मैं हरिक साँस में
साँस को प्रेम की , रागिनी चाहिए
बात सुनने में लगती है कैसी अजब
ज़िंदगी के लिए , ज़िंदगी चाहिए
भीड़ है तो ख़ुदाओं कि हर सू मगर
आदमी को यहाँ ,आदमी चाहिए
उठ रहा है धुआं , हर नज़र से यहाँ
हर नज़र को मगर, चाँदनी चाहिए
नफ़रतों को मिटा , दे जो दिल से ' रसिक '
आज दिल को वही , सादगी चाहिए
शाइर - रसिक देहलवी
आबलों का सफ़र और घायल जिगर
चाँदनी में ढली इक नदी चाहिए
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