Tuesday, November 1, 2022

ग़ज़ल - घर बसाने हम चले थे , दिल लुटा कर रह गए

 घर बसाने हम चले थे , दिल लुटा कर रह गए 

ग़म हमारी   ज़िंदगी पर   मुस्कुरा कर रह गए 


दूर हो पाई   न फिर भी   आस्मां की तीरगी 

रफ़्ता रफ़्ता सब सितारे जगमगा कर रह गए 


जब सुनानी ही पड़ी ख़ुद   उनको अपनी दास्तां 

दिल की मजबूरी पे अपनी तिलमिला कर रह गए


ख़ुद को भी लगने लगे जब अजनबी तो दोस्तों 

आईने के  सामने हम   सर झुका कर रह गए 


याद उनकी जब भी आई , झूमती गाती ' बशर '

एक मीठी सी ग़ज़ल हम   गुनगुना कर रह गए 



शाइर - बशर देहलवी 




No comments:

Post a Comment