Friday, November 4, 2022

ग़ज़ल - बिना हो नींद पे जिनकी वो मेरे ख़्वाब नहीं

 

बिना हो नींद पे जिनकी वो मेरे ख़्वाब  नहीं 

मैं अपने आप में इक लफ़्ज़ हूँ किताब नहीं 


मेरे सवाल पे चुपके से मुँह के फेर लिया 

ये बेरुख़ी   तो मेरा   हासिले जवाब नहीं 


किसी की आँख से निकला हुआ मैं आँसू हूँ 

मैं फैल जाऊँ तो   मेरा कोई  हिसाब नहीं 


उतर के आई   है आँगन   में चाँदनी मेरे 

अगरचे अर्श पे अब कोई माहताब नहीं 


घुली हो जिसमे न साक़ी की चश्मे नाज़ ' बशर '

भले हो चीज़   वो कुछ भी   मगर शराब  नहीं। 




शाइर - बशर देहलवी   


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