बक़ौल मिर्ज़ा ग़ालिब - मौत का एक दिन मुअय्यन है , नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
मौत का दिन ही तय नहीं होता बल्कि जगह और वक़्त भी पहले से ही तय होता है। फ़ारसी में एक पुरानी कहावत है कि इंसान का दाना - पानी और उसकी मौत उसको खींच कर ले जाती है , मसलन अगर मेरी मौत यहाँ से ५००० किलोमीटर दूर किसी ख़ास जगह और वक़्त पर लिखी है , तो मैं उस जगह और उस वक़्त पर वहाँ पहुँच जाऊँगा। इंसान के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह सही वक़्त और जगह पर मरे और अगर ऐसा नहीं होता तो उसके परिवार और दोस्तों को शिकायत रह सकती है। असल में इंसान की मौत के बारे में सब कुछ पहले से तय होता है लेकिन इंसान को इसका इल्म नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए , अगर ऐसा हुआ तो इंसान मौत को भी धोका देने की कोशिश करेगा। कुछ लोगो का तो ये भी मानना है कि मौत सिर्फ़ एक ठहराव होती है और इस ठहराव के बाद इंसान फिर से ज़िंदा हो जाता है।
बक़ौल मीर तक़ी मीर -
मुर्ग मांदगी का एक वक़्फ़ा है
यानी आगे चलेंगे दम ले कर
इस बात को यूँ भी समझा जा सकता है कि वास्तव में मौत सिर्फ़ बदन की होती है रूह की नहीं , यानी आत्मा कभी नहीं मरती। गीता में भी यही कहा गया है कि आत्मा सिर्फ़ चोला बदलती है।
मौत के बारे में लोगो के अलग अलग ख़्याल है , उर्दू शाइरी में आपको मौत पर हज़ारों शे'र मिल जायेंगे।
बक़ौल कृष्ण बिहारी नूर -
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है ,
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।
मौत , ज़िंदगी कि मंज़िल तो है लेकिन यह मंज़िल ऐसी है जहाँ पहुँच कर किसी को ख़ुशी नहीं मिलती बल्कि मिलता है अंतहीन दर्द।
जब दूसरा कोई रास्ता ही नहीं तो क्यों नहीं हम इसी रास्ते को खुशगंवार बना ले और इस रास्ते पर मोहब्बत के फूल उगाते चले जिससे कि आने वाली नस्लों को यह रास्ता काटने में दुश्वारी न हो।
प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस
जब व्यक्ति को वास्तव में यह बोध हो जाता है कि केवल शरीर मरता है आत्मा नहीं, तो वह मृत्यु के लिए शोक भी नहीं करता। मुश्किल यह है कि अधिकतर हमारा यह ज्ञान केवल शाब्दिक होता है आत्मिक नहीं।
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