बरसाए सिर्फ़ फूल ही कब है बहार ने
बख़्शा है दिल को दर्द भी परवरदिगार ने
फ़ुर्सत कहाँ उन्हें जो वो आएँगे इस तरफ़
आ मिल गले मुझी से कहा इन्तिज़ार ने
मिलता कहा से हमको दरे यार का पता
छोड़े हैं नक़्शे पा भी न देखों ग़ुबार ने
फूलों से गुफ़्तगू की तमन्ना तो इक तरफ़
रोने दिया न हमको तो उजड़े दयार ने
सीने में इक आग भड़कती थी ऐ ' बशर '
उसको बुझा दिया है दिल बेक़रार ने
शाइर - बशर देहलवी
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