Friday, November 4, 2022

ग़ज़ल - बरसाए सिर्फ़ फूल ही कब है बहार ने

 


बरसाए सिर्फ़   फूल ही   कब है बहार ने 

बख़्शा है दिल को दर्द भी परवरदिगार ने 


फ़ुर्सत कहाँ उन्हें जो वो आएँगे इस तरफ़ 

आ मिल गले मुझी   से कहा इन्तिज़ार ने 


मिलता कहा से हमको दरे यार का पता 

छोड़े हैं नक़्शे पा भी न देखों ग़ुबार ने 


फूलों से गुफ़्तगू की तमन्ना तो इक तरफ़  

रोने दिया न हमको  तो उजड़े दयार ने 


सीने में इक आग भड़कती थी ऐ ' बशर ' 

उसको   बुझा दिया  है दिल बेक़रार ने 




शाइर - बशर देहलवी 

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