तब तक रहेंगी आप से ख़ुशियाँ परे परे
जब तक रहेंगे आप ही इस से डरे डरे
लगता है अब किसी से उठाया न जाएगा
भारी जो हो गया है ये पत्थर धरे धरे
जाने वो क्या नज़र थी जो गुलशन पे छा गयी
शाख़ों पे खिल उठे हैं जो पत्तें हरे हरे
देखो छलक न जाये लगा दी ये शर्त भी
साक़ी ने दे को जाम मुझे कुछ भरे भरे
ऐसी ग़ज़ल सुनाओ कि सुन के जिसे ' बशर '
अरमान दिल में जाग उठे फिर मरे मरे
शाइर - बशर देहलवी
No comments:
Post a Comment