Harangfölirat
घंटियों की इबारत
हाँ , इसीलिए बजती हैं घंटियाँ
कि ज़िंदा लोगों को बुला सके 
मृत  लोगो   को दफ़ना  सके 
और ओलों की बाढ़ व 
आग के संकट के समय 
विजयी वंशजों को  देखते हुए 
मैं  बजाता हूँ लगातार 
' जागते रहो ' की  घंटियाँ। 
कवि -  Kányádi Sándor
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 
 
बहुत सही सर
ReplyDeleteआज घंटियों की महत्ता के विषय में जानकारी मिली।
धन्यवाद सर
आज के परिवेश में,आपकी इन घंटे घड़ियालों की बहुत आवश्यकता है,क्योंकि आज आदमी जागते हुए भी सो रहा है।शायद आपकी इस कविता के माध्यम से जागे।
ReplyDelete👍🔔👍
ReplyDelete������....'सूरी'
ReplyDelete👍🔔👍....'सूरी'
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