ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि कलाकारों को कविता ,कला , संगीत ,साहित्य विरासत में मिलता है। हमारे आस -पास ही ऐसे अनेक परिवार मिल जायेंगे जिनमे पिता की कला उनके बच्चों में देखने को मिलती है। ऐसे ही एक परिवार दिल्ली के गुलमोहर पार्क में भी है जिसे सब वसिष्ठ परिवार के नाम से जानते हैं।
कीर्तिशेष विद्यासागर वसिष्ठ का जन्म २ अगस्त १९०८ को मूना कस्बे में हुआ जोकि अब पकिस्तान में हैं। इनको बचपन से ही ख़बरे लिखने का शौक़ था। पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होने मर्चेंट नेवी में नौकरी करी लेकिन यह नौकरी इनको रास नहीं आई ,इसीलिए नौकरी छोड़कर वापिस अपने घर आ गए। श्री विद्यासागर जी ने हिन्दी हिदुस्तान दैनिक में लगभग ३५ वर्षो तक कार्य किया। श्रीमती खजानो देवी का यह पुत्र किसी ख़ज़ाने से कम नहीं था। इनका जीवन बहुत ही सादा और सरल था। पत्रकारी में दक्ष और साहित्य में भी दख़ल। इनकी कविताओं का प्रथम काव्य संग्रह - 'सागर रचना ' इनकी प्रथम पुण्यतिथि पर लोकार्पित हुआ। १९८० में हिंदुस्तान दैनिक से समाचार सम्पादक के पद से रिटायर हुए और १७ सितम्बर १९८३ को जानलेवा कैंसर से उनकी मृत्यु हो गयी। श्री विद्यासागर जी ने दो विवाह किये थे ,पहली पत्नी का नाम श्रीमती शान्ति देवी और दूसरी पत्नी का नाम श्रीमती गायत्री देवी। श्री सुभाष वसिष्ठ और कीर्तिशेष सतीश सागर श्रीमती गायत्री देवी की संताने हैं।
डॉ सुभाष वसिष्ठ का जन्म ४ नवंबर १९४६ को हुआ। आप एक जाने-माने निर्देशक ,अभिनेता ,रंगकर्मी ,प्रोफेसर और कवि हैं।बदायूं में रहते हुए लगभद दो दशकों तक आपने अनेक नाटकों में अभिनय किया जिनमे गोदान के पात्र होरी का अभिनय अद्भुत रहा। नाटकों के अलावा आप कविताये भी लिखते हैं। कुछ वर्षों पहले इनके नव गीत संग्रह - ' बना रहे ज़ख़्म तू ताज़ा ' का लोकार्पण दिल्ली के गाँधी भवन में हुआ था। साहित्य ,कला और अभिनय के क्षेत्र में इनकी सक्रिय भागीदारी को प्रणाम।
कीर्तिशेष सतीश सागर , श्री विद्यासागर के छोटे सुपुत्र एक प्रतिष्ठित कवि ,पत्रकार और लेखक थे। इनका जन्म १५ अगस्त १९५५ को दिल्ली में ही हुआ। नवजीवन , कैपिटल रिपोर्टर ,वीर अर्जुन में विभिन्न पदों पर काम करने के बाद आपने हिन्दी हिन्दुस्तान में कार्य किया। हिंदुस्तान में वरिष्ठ उप सम्पादक के रूप में कार्य करते हुए अपने कविता लेखन के शौक़ को ज़ारी रखा। आप मूलतः व्यंग तथा आक्रोश के कवि थे। दिल्ली और आस -पास के राज्यों में उन्हें ससम्मान कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता था। अनेक साहित्यक पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती थी। आकाशवाणी से भी कविताओं का प्रसारण हुआ और आपने दूरदर्शन के ऑर्काइव में भी महत्वपूर्ण सहयोग दिया। सतीश सागर बहुत ही सरल , विनम्र ,हँसमुख और मिलनसार इंसान थे। अफ़सोस कि ०४ दिसंबर २०१७ को उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें हम से छीन लिया।
सतीश सागर और सुभाष वसिष्ठ दोनों भाई मिलकर १९८५ से लगभग ३० वर्षों तक हर वर्ष अपने पिता कीर्तिशेष विद्यासागर वसिष्ठ की पुण्यतिथि १७ सितम्बर को 'अग्रसर ' संस्था के बैनर पर पत्रकारिता पर विमर्श और काव्य संध्या का आयोजन करते रहे जिनमे मैं भी अनेक बार शामिल हुआ।
ईश्वर से यही कामना हैं कि इस परिवार की सांस्कृतिक धरोहर सदा एक अनवरत नदी की तरह बहती रहे।
NOTE : डॉ सुभाष वसिष्ठ को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद
प्रिय भाई श्री इन्दुकान्त जी,अपने ब्लॉग'अदबीयात्रा' में आपने हमारे वसिष्ठ परिवार के पत्रकारिता,कविता व सांस्कृतिक अवदान की बख़ूबी चर्चा की है।बहुत भला लगा।आप जैसे साहित्यिक सुरुचिपूर्ण व मित्रों का ध्यान रखने वाले व्यक्ति आज के युग में विरले ही है।आपका राग बोध प्रशंसनीय है।हार्दिक धन्यवाद व शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteएक योग्य व्यक्ति के योग्य पुत्र को चरितार्थ करते हुए साहित्य को अग्रसर दिशा देते हुए बहुत बहुत बधाई हो आपको
ReplyDeleteसराहनीय कार्य इन्दु जी!
ReplyDelete