Tuesday, August 18, 2020

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब -उर्दू शाइरी का सफ़रनामा

 हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब दिल्ली की एक बहुत पुरानी उर्दू अदब की संस्था है जोकि बरसों से उर्दू ज़बान और शाइरी की  ख़िदमत  करती आ रही है। इसकी स्थापना दिसंबर १९६७ में दिल्ली में ही हुई थी और तभी से यह संस्था बिना रुके हर महीने अदबी नशिस्तों का आयोजन करती आ रही है। दिलचस्प बात यह है कि ये नशिस्ते हर महीने किसी न किसी शाइर के घर पर ही होती है।  कुछ ख़ास मौकों पर यह संस्था बड़े पैमाने पर मुशायरो का आयोजन भी करती है , यूँ देखा जाये तो ये नशिस्ते भी किसी मुशायरे से कम नहीं होती। इन नशिस्तों में न सिर्फ़ दिल्ली बल्कि दिल्ली के आस-पास के शहरों के  शाइर भी शिरकत फ़रमाते  हैं। यह  संस्था इतनी पुरानी होने के बावजूद पंजीकृत नहीं है और इस सिलसिले में  संस्था के सचिव मशहूर शाइर जनाब सीमाब सुल्तानपुरी साहब फ़रमाते  है कि 'जो संस्था रजिस्टर  हो जाती है वह संस्था रजिस्टर में ही बंद हो जाती है'।

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब की नशिस्तों में सभी धर्मों के शाइर शिरकत फ़रमाते हैं और इसकी गंगा जमुनी तहज़ीब एक मिसाल  बन चुकी हैं। हिन्दी और उर्दू ,दोनों ज़बानों के शाइर यहाँ खुल कर अपना क़लाम बढ़ते हैं। आख़िर ज़बान कोई भी हो अदब तो अदब होता हैं  और मुहब्बत की बोली ही अदब को अदब बनाती हैं ।  

जनाब हफ़ीज़ जालंधरी का शे'र याद आ गया -


'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली

न   उर्दू     न   हिन्दी   न     हिन्दोस्तानी 



हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब , अदबी संस्था उर्दू ज़बान  तो नहीं  सिखाती लेकिन उर्दू और शाइरी का प्रचार-प्रसार ज़रूर करती हैं। इनकी नशिस्तों में नए शाइरों  की हौसलाअफ़ज़ाई की जाती हैं और पुराने  शाइरों के क़लाम सुन कर नए लिखने वाले सीखते भी हैं।  उर्दू शाइरी में तरही मिसरों पर ग़ज़ल कहने की पुरानी रवायत है।  किसी मशहूर शाइर का मिसरा दे दिया जाता है और सभी शाइर उस मिसरे पर ग़ज़ल कह कर नशिस्तों में सुनाते हैं। इस कोशिश से नए ग़ज़लकारों को नयी नयी ज़मीनों में ग़ज़ल कहने का अवसर मिलता है और इस तरह उनके क़लाम में निरंतर निखार आता रहता है।  

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब  की नशिस्तों में शिरकत फ़रमाने वाले  चंद  मशहूर जीवित और दिवंगत  शाइरों के नाम देखे :

सागर निज़ामी , शहरयार परवाज़ , मेहदी नज़्मी ,ज़िया फ़तेहाबादी , शमीम कराहनी ,कँवल अम्बालाबी ,ऋषि पटियालवी , जगदीश जैन, नसीम काश्मीरी ,उन्वान चिश्ती ,कुमार पाशी ,जावेद वशिष्ठ, मनचंदा   बानी ,कृष्ण मोहन ,डी राज कँवल , ब्रह्मानंद जलीस ,बलराज हैरत ,हसन नईम , मोहसिन ज़ैदी ,अब्दुल फैज़ सहर,अजीज़ भगरवी ,अफजल किरतपुरी ,बसीम हैरती , काली दास गुप्ता रज़ा ,हीरा नन्द सोज़ ,ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी , मुग्गीसुद्दीन फरहदी , कुंवर मेहन्दर सिंह बेदी सहर , मुन्नवर सरहदी ,नज़्मी सिकन्दराबादी , मख़्मूर सईदी ,सर्वेश चंदौसवी, भगवान दास एजाज़,मालिक जादा ज़ावेद, कुलदीप गौहर, रमेश तन्हा , धर्मेंदर नाथ , ओम कृष्ण राहत ,मज़हर इमाम , कमर रईस ,बकार मानवी , ज़फर मुरादाबादी ,राज  कुमारी राज़ , अनिल मीत , राजगोपाल सिंह ,ज्ञान प्रकाश विवेक ,सविता चड्ढा , सलीम शिराजी ,उर्मिल सत्यभूषण , हरे राम समीप, नाशाद देहलवी, विजय  स्वर्णकार , जाम बिजनौरी , असद रज़ा , ज़ेबा जौनपुरी , आज़िम कोहली ,राना मज़हरी ,जी  आर कँवल , साहिल अहमद ,लक्ष्मी शंकर  वाजपेयी , शान्ति अग्रवाल,शिवन लाल जलाली , समर नूरपुरी  आदि।  

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब की नशिस्तों में दूसरे देशों के शाइर भी शिरकत फरमाते रहें हैं जिनमे डॉ वज़ीर आग़ा,डॉ अनवर सदीद ,डॉ वहीद कुरैशी ,फ़हमीदा रियाज़ ,तारिक़ महमूद,हरचरण चावला , सरवर आलम राज़ सरवर , राजकुमार क़ैस ,स्वर्ण सिंह परवाना और सतपाल भंडारी राज़ के नाम उल्लेखनीय हैं।    

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब के सचिव जनाब सीमाब सुल्तानपुरी हमेशा इन नशिस्तों की ऑडियो रिकॉर्डिंग करते हैं  और शायद उनके पास पुरानी  रिकॉर्डिंग आज भी सुरक्षित हो। मैंने भी हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब  की  बहुत-सी नशिस्तों में शिरकत फ़रमाई है और उपरोक्त लगभग सभी शाइरों से मुलाक़ात भी हुई है। 

आज सबका क़लाम तो मुझे याद नहीं लेकिन चंद शे'र ज़रूर साझा करना चाहुँगा  :


जो चाहो सो तुम रख लो जो चाहो मुझे दे दो 

ख़ुशियाँ भी तुम्हारी हैं   ये ग़म भी तुम्हारें हैं 

- सीमाब सुल्तानपुरी 


हमने कुछ ऐसे   ख़्वाब  तो देखे 

रह गयी दुनिया जिनको तरसती

-बलराज हैरत 


मुहब्बत की  दुआएँ दे रहा हूँ 

पलट  आओ सदाएँ दे रहा हूँ 

-डी राज  कँवल 



हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब का अदबी सफ़र आज भी ज़ारी है और ५२४ वी ऑनलाइन महाना नशिस्त २३ अगस्त २०२० को होगी। 



NOTE : 

हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब के सचिव जनाब सीमाब सुल्तानपुरी का उनके सहयोग के लिए शुक्रिया

        

1 comment:

  1. हम उसी मोड़ पर खड़े हैं
    जहाँ से लौटते बहुत कम है
    अंतर सिर्फ इतना है कि
    मरकर देख रहे है हम जिन्दा होकर देख रहे हैं ।
    राही राज ।

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