कीर्तिशेष बाबू राम पालीवाल जी का जन्म २५ अक्टूबर १९०७ को कुर्रीकूपा गाँव , ज़िला आगरा में हुआ तो किसी को नहीं मालूम था कि एक दिन यह व्यक्ति हिन्दी भाषा के विकास में नये कीर्तिमान स्थापित करेगा। कीर्तिशेष बाबू राम पालीवाल जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे , उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में रचनाये लिखी। कविता , कहानी , नाटक , समीक्षा , बाल साहित्य ,अनुवाद आदि सभी विधाओं में उनकी गहरी पैठ थी। उनके द्वारा रचित ' कार्यालय निर्देशिका ' पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय हुई और भारतीय सरकार द्वारा भी उनके इस प्रयास को सराहया गया।
उनका देशप्रेम भी प्रशंसनीय है। भारत - पाकिस्तान युद्ध के दौरान ६५ बाँकुरों पर रची उनकी पुस्तक ' भारत के रणवीर बाँकुरें ' भी काफी लोकप्रिय हुई। उनके कविता संग्रह ' चेतना ', कनक किरण ' और 'नारी तेरे रूप अनेक ' भी काफी चर्चा में रहे। बाल साहित्य पर उनकी कृतियां ' पक्षियों का कवि सम्मेलन ' और 'चम -चम चमके चंदा मामा ' इस बात को साबित करती है कि साहित्य कि हर विधा में उनका दखल था।उनके चार एकांकी नाटक ' खेल खेल में ' पुस्तक में संग्रहित हैं। १९४५ से पूर्व आप 'नीलम पालीवाल' उपनाम से लिखते थे।
कीर्तिशेष बाबू राम पालीवाल जी अत्यंत सहज और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। १९४५ से १९५१ तक इन्होने भारत सरकार के संचार मंत्रालय में हिन्दी अधिकारी के रूप में कार्य किया। १९६३ से १९७० तक आप आकाशवाणी में बृज भाषा यूनिट के निर्माता के पद पर आसीन रहे।
यह एक संयोग ही है कि दिल्ली के वसंत विहार में हमारे और उनके परिवार में एक दूसरे का आना-जाना था। उनके घर की बैठक के शोकेस में सजी उनकी पुस्तके मैंने दूर से ही देखी थी और मुझे यह अंदाज़ा नहीं था कि मैं एक बड़े साहित्यकार के घर में बैठा हूँ।वास्तव में इस परिवार से हमारी जान पहचान होने से पूर्व ही कीर्तिशेष बाबू राम पालीवाल जी इस सराये फ़ानी से गुज़र चुके थे। एक बड़े अंतराल के बाद जब उनकी सुपुत्री श्रीमती भारती पालीवाल के ज़रीये उनके महान व्यक्तित्व से परिचित हुआ तो मेरे लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था
कीर्तिशेष बाबू राम पालीवाल जी अँधेरे से लड़ने वाले जीवट कवि थे , उन्हें मालूम था कि रौशनी को पाने के लिए अँधेरे का सीना चीरना पड़ता हैं। उनकी कविताएँ सहज ही मन में उतर जाती है , बानगी के लिए एक छोटी-सी कविता देखे -
प्रकाश की रेखा
जीवन में आई , स्नेह सुधा को भरने
रंगों को जीवन में भर लाई ऐसे
घन माला के अंतराल में बिजली जैसे
और श्यामल रजनी के ,
अँचल में प्रकाश की रेखा
तुम्हे उर में मैंने
कनक किरण-सी देखा।
एक कवि हृदय वाला कवि ही इतनी सुन्दर रचना कर सकता है। अफ़सोस कि मेरी कभी उनसे मुलाक़ात नहीं हुई और १७ नवंबर १९७८ को यह महान कवि इस दुनिया को अलविदा कह गया लेकिन उनकी कविताएँ आज भी इस दुनिया में अपना प्रकाश फैला रही हैं।
अधिक जानकारी के लिए देखे -
https://www.facebook.com/Paliwal-B-R-Hindi-and-Braj-Bhashas-Scholar-Writer-Poet-475377006193818/
यादो के खजानो से रोज एक अनोखे दीपक लाता हूँ
ReplyDeleteआपके लिए कभी शायर कभी कवि का पैगाम लाता हूँ राही राज
इंदुकांत जी आप सचमुच बहुत बढ़िया कार्य कर रहे हैं ।
ReplyDeleteइंदुकांत जी के बारे में भाई ज्ञानचंद जी की प्रतिक्रिया से
ReplyDeleteमैं भी सहमत हूँ। इंदुकांत जी की कविताओं का मैं एक मुरीद हूँ। भाषा और संवेदना की समझ कविता के लिए
पूंजी होती है, चाहे कविता लिखी जाए या उसपर टिप्पणी की जाए।