Thursday, August 20, 2020

कीर्तिशेष देवराज उपाध्याय - आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का मनोवैज्ञानिक

 कीर्तिशेष  डॉ  देवराज उपाध्याय हिन्दी साहित्य के एक ऐसे कीर्तिमान लेखक है जिनको उनके साहित्यिक  योगदान के लिए कभी भुलाया  नहीं जा सकता , यह  अलग बात है कि इस महान लेखक के  बारे में गूगल पर भी अधिक जानकारी नहीं है।लगभग साढ़े छह फुट का क़द , इकहरा बदन और सावला रंग ।  आरा , बिहार के रहने वाले डॉ देवराज उपाध्याय मेरे पिता जी डॉ रमेश कुमार अंगिरस के अभिन्न मित्रों में से थे और उनका अक्सर हमारे घर पर आना-जाना लगा रहता था। उन्हें ब्लड कैंसर था और अपने  इलाज   के सिलसिले में उन्हें अक्सर दिल्ली आना पड़ता था। उनके साथ हमेशा उनका एक सेवक रहता जो उनसे डिक्टेशन भी लेता था । बीमारी के दौरान भी उनका साहित्यिक लेखन ज़ारी था। बधिर होने के बावज़ूद प्रोफेसर   देवराज उपाध्याय  ने विश्विद्यालयों में अध्यपान का कार्य किया। इतिहास में ऐसे शिक्षक का  शायद एकमात्र उदाहरण है। यह कहना तो मुश्किल होगा  कि उनके विद्यार्थियों का इस सिलसिले में क्या अनुभव रहा होगा लेकिन उनसे बात करना किसी  के लिए भी सहज नहीं था क्योंकि डॉ देवराज उपाध्याय पूर्ण रूप से बधिर थे। आप हमेशा एक राइटिंग पैड अपने साथ रखते थे और वार्तालाप के लिए उनसे लिख कर बात करनी पड़ती थी , लेकिन इतना ज़रूर था कि रोज़मर्रा की कोई बातचीत वो इशारों से भी समझ जाते थे। 

यह मेरा सौभाग्य ही है कि मुझे उनकी सेवा करने का अवसर मिला।  आप जब कभी भी हमारे घर ठहरते तो उनके नाश्ते और भोजन आदि की व्यवस्था मुझे ही देखनी पड़ती थी , यहाँ तक कि  मुझे उनके कमरे में उनके साथ ही सोना पड़ता था ताकि अगर उन्हें रात को किसी चीज़ की आवश्यकता पड़े तो मैं उसका ध्यान रख सकूँ। आप  मुझसे काफी स्नेह रखते  थे और कभी कभी मुझे अपने साथ बाहर भी ले जाते थे। एक बार वो मुझे अपने साथ वरिष्ठ साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार के घर दरियागंज में ले गए।  एक पुराने से मकान में शायद   दूसरी मंज़िल पर जैनेन्द्र कुमार जी ने हमारा स्वागत किया। बर्फ़ से सफ़ेद बाल , लगभग पांच फुट का क़द और गोरा रंग देखकर मैं काफी  हतप्रभ था। मुझे याद है उनकी कमर भी थोड़ी झुकी हुई थी और बहुत धीमे स्वर में बात कर रहे थे।   बातों का सिलसिला शुरू हुआ और जो कुछ  जैनेन्द्र कुमार जी पूछते, मैं उसे लिख कर डॉ देवराज उपाध्याय के सामने रख देता।  हम लोग लगभग एक घंटा वहाँ रुके होंगे। अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान डॉ देवराज उपाध्याय  ने अपने समय के अनेक शीर्षस्थ साहित्यकारों से मुलाक़ातें  की और दिल्ली यात्रा के दौरान एक बार उनकी उनकी ज़ेब भी कटी थी जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी एक पुस्तक में किया है।  

 

उनकी पी. एच. डी का विषय था - 'आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य और मनोविज्ञान ' जोकि १९५६ में स्वीकृत हो गयी थी , बाद में इसी पुस्तक के दूसरे संस्करण में आप ने उन कथाकारों का भी ज़िक्र किया जो पहले छूट गए थे। कथा मनोविज्ञान पर डॉ देवराज उपाध्याय का साहित्यिक योगदान अतुलनीय है। उनकी कुछ चर्चित प्रकाशित पुस्तकों के नाम देखे -

साहित्य तथा साहित्यकार 

साहित्य शास्त्र के नए प्रश्न 

साहित्य एवं शोध : कुछ समस्याएँ 

अध्धयन और अन्वेषण 

आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य और मनोविज्ञान 


डॉ देवराज उपाध्याय  ग्रंथावली भी प्रकाशित हो चुकी है। 

6 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी। डॉ, देवराज की कई किताबें मेरे संग्रह में हैं। उनमें उनकी हिंदी कथा साहित्य और मनोविज्ञान का उपयोग मैंने अपने शोध हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन में किया था।

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  2. बहुत अच्छी जानकारी। डॉ, देवराज की कई किताबें मेरे संग्रह में हैं। उनमें उनकी हिंदी कथा साहित्य और मनोविज्ञान का उपयोग मैंने अपने शोध हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन में किया था।

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  3. धन्यवाद महोदय 🙏🏻

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  4. डॉ.देवराज और डॉ.देवराज उपाध्याय एक ही व्यक्ति हैं?
    आप विरल विषयों पर कलम चला रहते हैं।नाम भर सुन
    रखा है.. बहुत सारे लेखक और कवि ऐसे ही हैं। अनेक किताबें और अनेक कविताएं भी। 😀 😀 😀

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    1. जी हाँ , डॉ देवराज और डॉ देवराज उपाध्याय एक ही व्यक्ति हैं

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  5. बहुत सुन्दर लिख रहे हो,इंदु कान्त जी।डॉक्टर देवराज उपाध्याय जी से मैं भी मिला था।जब वो हमारे घर ग़ाज़ियाबाद आये थे।मेरा सौभाग्य है,क्योंकि मैं डॉक्टर रमेश कुमार अंगिरस जी का छोटा भाई हूँ, और उस समय भाई साहब के साथ मैं, ग़ाज़ियाबाद में ही रहता था।मैं दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में उनसे मिलने भी गया था।

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