मुंशी प्रेमचंद की १४०वी जयंती के अवसर पर साहित्य संसार में प्रेमचंद और उनके साहित्य पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है और हम सब प्रेमचंद की यादों को ताज़ा कर रहे हैं। मुझे हंगेरियन साहित्य पढ़ने का जब अवसर मिला तो यह जानकार सुखद आश्चर्य हुआ कि जिस समय भारत में प्रेमचंद साहित्य की रचना कर रहे थे उसी समय उन्ही के मुक़ाम का एक कवि ,सम्पादक ,कहानीकार ,अख़बारनवीस, अनुवादक और उपन्यासकार कोस्तोलान्यी दैज़ो हंगेरियन साहित्य को अपने बेशक़ीमत साहित्य से समृद्ध कर रहे थे।
जहां हमे प्रेमचंद के साहित्य में भारतीय समाज के तत्कालीन विभिन्न सामजिक पहलू देखने को मिलते हैं उसी प्रकार कोस्तोलान्यी दैज़ो के साहित्य में हमें तत्कालीन हंगेरियन समाज के दर्शन होते हैं। दोनों के साहित्य में समाजिक चिंताओं को दर्ज़ किया गया है विशेषरूप से शोषित किसान और मज़दूरों की व्यथा।
प्रेमचंद शरू से ही कहानी या उपन्यास लिखते थे , उनकी नज़र में कविता सिर्फ़ एक तस्सवुर पैदा करती है और कविता के ज़रीये समाजिक उत्थान संभव नहीं। जब प्रेमचंद गोरखपुर में रहते थे तो अक्सर उनकी मुलाकात मशहूर शायर जनाब फ़िराक़ गोरखपुरी से होती थी और प्रेमचंद उनकी शाइरी को अक्सर नज़रअंदाज़ कर जाते थे। अगर हम साहित्यिक इतिहास पर नज़र डाले तो देखने को मिलता है कि जो साहित्यकार अपनी साहित्य यात्रा कविता से आरम्भ करते है वे बाद में कहानी या उपन्यास लिख लेते हैं लेकिन जो साहित्यकार अपनी साहित्य यात्रा कहानी या उपन्यास से शरू करते हैं ,वे अक्सर बाद में भी कविता नहीं लिखते। प्रेमचंद एक ख़ालिस कहानीकार और उपन्यासकार थे , उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि से नवाज़ा गया। प्रेमचंद ने कवितायेँ नहीं लिखी लेकिन कोस्तोलान्यी दैज़ो आरम्भ में कवितायेँ ही लिखते थे और बाद में उन्होंने कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे। प्रेमचंद की कहानियों में तत्कालीन समाज का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। उनके आरम्भ के साहित्य में आदर्शवाद और बाद में यथार्थवाद देखने को मिलता है। आम आदमी की बोल चाल की भाषा और रोज़मर्रा के मुहावरों ने उनके साहित्य को सहज ,सरल व पठनीय बनाया है लेकिन कोस्तोलान्यी दैज़ो की कहानियों और उपन्यासों में कविता के बिम्ब बिखरे पड़े हैं जो पाठक को एक दूसरी दुनिया में ले जाते हैं। प्रेमचंद का उपन्यास पढ़ने के बाद पाठक विचारशील हो जाता है लेकिन कोस्तोलान्यी दैज़ो के उपन्यास पढ़ने के बाद पाठक उसके सौंद्रयबोध में ही खो जाता है। उनके उपन्यासों में कविता की एक सौंधी महक तैरती रहती है।
भारतीय पाठक प्रेमचंद के साहित्य से तो परिचित हैं लेकिन अब कोस्तोलान्यी दैज़ो के साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी पढ़ सकते हैं ।
उपलब्ध हिन्दी अनुवाद -
अभिनेता की मृत्यु - डॉ कौवेश मारगित द्वारा सम्पादित कहानी संग्रह
( इस पुस्तक में हंगरी के दूसरे साहित्यकारों की कहानियां भी शामिल है )
उपन्यास :
प्यारी अन्ना - अनुवादक - इन्दु मजलदान
चकोरी - अनुवादक - इन्दु मजलदान
मुंशी प्रेमचंद -
जन्म - ३१ जुलाई १८८०
निधन - ०८ अक्टूबर १९३६
कोस्तोलान्यी दैज़ो
जन्म - २९ मार्च १८८५
निधन - ०३ नवंबर १९३६
प्रेमचंद , कोस्तोलान्यी दैज़ो से लगभग पांच वर्ष बड़े थे। कोस्तोलान्यी दैज़ो शायद अपने बड़े भाई प्रेमचंद की मृत्य का शोक नहीं सह पाए और उनके जाते ही स्वयं उनसे स्वर्ग में मिलने चले गए।
कभी कभी जख्म , गहरे हो जाते हैं ,
ReplyDeleteजिन्हें हम अपनी जान देकर चुकाने है ।
बहुत ही अच्छी,नई एवं महत्वपूर्ण जानकारी । ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या, तत्कालीन कहानीकारों की।अच्छी जानकारी देने से समाज में जागरूकता आती है।
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