जिस तरह किताबें सिर्फ़ उनकी नहीं होती जो उन्हें ख़रीदतें हैं अपितु किताबें होती हैं उनकी जो उन्हें पढ़तें हैं, उसी तरह भाषा भी सिर्फ़ उनकी नहीं होती जो अपनी माँ के पेट से सीख कर आते हैं अपितु होती है उनकी भी जो उस भाषा को पहले सीखते हैं और फिर उसी को ओढ़ते-बिछाते हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य को भारतीय लेखकों और साहित्यकारों ने तो समृद्ध किया ही हैं लेकिन इस दिशा में विदेशी लेखकों और साहित्यकारों के अतुलनीय योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता , विशेषरूप से विदेशी भाषाओं से हिन्दी और हिन्दी से विदेशी भाषाओं में किया गया अनुवाद। इन साहित्यिक अनुवादों ने हिन्दी भाषा और साहित्य को अधिक समृद्ध किया है।आज विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का पठन-पाठन ज़ारी है और कई विश्वविद्यालयों में तो विदेशी विद्वान ही हिन्दी भाषा पढ़ा रहे हैं , उन्ही विद्वानों में से एक कड़ी है रूसी - हिन्दी विदुषी डॉ स्ट्रेलकोवा गुज़ेल व्लदीमीरोवना।
वर्तमान में Dr Strelkova Gyuzel Vladimirovna (स्ट्रेलकोवा गुज़ेल व्लदीमीरोवना ) IAAS MSU ( Institute of Asian & African Studies ,Moscow State University ) में हिन्दी भाषा और साहित्य की एसोसिएट प्रोफ़ेसर है। आप हिन्दी के साथ साथ मराठी भाषा भी पढ़ाती हैं। अनेक रूसी और अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक बैठकों में पेपर पढ़ चुकी हैं। आप ने के हिन्दी के कई प्रतिष्ठित लेखकों के साहित्य का हिन्दी से रूसी भाषा में अनुवाद किया हैं जिनमे कृष्ण बलदेव वैद , कुँवर नारायण , मृदुला गर्ग के नाम उल्लेखनीय हैं। महात्मा गाँधी की १५० वी जन्मशती के अवसर पर इनके द्वारा अनूदित, महात्मा गाँधी द्वारा रचित पुस्तकों - हिन्द स्वराज और अनासक्ति योग -गीता का सन्देश , का रूसी भाषा में अनुवाद काफी चर्चित रहा।
आजकल आप कुँवर नारायण के कहानी संग्रह " आकारों के आस पास " एवं चंपा वैद के कविता संग्रह " स्वप्न में घर " के रूसी भाषा के अनुवाद कार्य में संलग्न हैं
गुज़ेल से मेरी पहली मुलाक़ात दिल्ली में स्थित साहित्य अकादमी के पुस्कालय में हुई थी। जब मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और बताया कि दिल्ली के रूसी सांस्कृतिक केंद्र में हम लोग " परिचय साहित्य परिषद् " के तत्त्वावधान में नियमित मासिक साहित्यिक कार्यक्रम करते हैं तो वह मुझसे काफ़ी मुतासिर हो गयी। इत्तफ़ाक से दो दिन बाद ही " चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय " मेरठ में उन्हें हिन्दी कथा साहित्य पर पेपर पढ़ना था। उन्होंने मुझसे इसरार किया कि मैं भी उनके साथ मेरठ चलूँ और मैंने स्वीकार कर लिया। विश्वविद्यालय में पेपर पढ़ने के बाद मैं उन्हें सरधना (मेरठ के नज़दीक एक मशहूर क़स्बा ) ले गया जहाँ एक मशहूर चर्च है जिसमे साल में दो बार बड़े मेले लगते हैं। सरधना कस्बे से २ किलोमीटर दूर त्यागियों का गाँव जुलेड़ा है और उस गावँ में मेरा एक परिचित परिवार भी रहता है। मैंने गुज़ेल से पूछा कि क्या वो गाँव देखना पसंद करेंगी और इसके लिए वह सहर्ष तैयार हो गयी। हम लोग जुलेड़ा गाँव गये , गाँव के अधिकाँश निवासी एक फ़िरंगी को देखकर हतप्रभ थे। हम लोग क़रीब एक घंटा वहां रुके होंगे और फिर रात तक दिल्ली लौट आये थे। उसके बाद भी दिल्ली में ही उनसे चंद मुलाक़ाते और हुई लेकिन बैंगलोर आ जाने के कारण बहुत से साहित्यिक सिलसिले टूट गए ,वज्ह कुछ भी रही हो पर सिलसिले टूट गए।
ख़ैर और क्या कहूँ , बस फ़िराक़ गोरखपुरी का यह शे'र याद आ गया -
एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हो तुझे ऐसा भी नहीं
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