पेड़-पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे
रास्तों में एक भी बरगद नहीं हैं
दुष्यंत कुमार का उपरोक्त शे'र कॉन्क्रीट के जंगलों और मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट्स की बालकोनियों में पनपती गमला संस्कृति पर तीखा व्यंग करता हैं। पेड़ अगर हैं तो कम से कम छाया तो दें। पेड़ तो आपको अपने आस -पास भी बहुत मिल जायेंगे लेकिन वैशाली, ग़ाज़ियाबाद में पर्यावरण को समर्पित एक ऐसी संस्था हैं जिसका नाम ही " पेड़ों की छाँव तले फाउंडेशन " है। पर्यावरण के अलावा इस संस्था की दिलचस्पी साहित्य में भी है। अक्टूबर २०१४ से "पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ "( फाउंडेशन की ही एक कड़ी ) निरंतर मासिक काव्य गोष्ठियों का आयोजन करती आ रही है जिसमे ग़ाज़ियाबाद और दूसरे शहरों के कविगण शिरकत फरमाते हैं। इस संस्था के अध्यक्ष प्रतिष्ठित कवि श्री अवधेश सिंह और प्रधान सचिव ठाकुर प्रसाद चौबे जी हैं।
कोरोना के चलते २३ अगस्त २०२० का पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ की ६६ वी काव्य ( द्वितीय ई-गोष्ठी ) वरिष्ठ साहित्यकार कन्हैया लाल खरे की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस ई-गोष्ठी में शिरकत फ़रमाने वाले कविगण सर्वश्री कन्हैया लाल खरे , विष्णु सक्सेना , अनिमेष शर्मा , मृत्युंजय साधक , डॉ सुमन साधक , मंजीत कौर मीत , पूनम कुमारी ,मनोज दिववेदी , निधिकांत पाण्डेय एवं अवधेश सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं।
" आज़ादी " विषय पर पढ़ी गयी चंद कविताओं के अंश देखें -
फ़हर -लहर तिरंगा कहता हमने आज़ादी पाई है
अब आज़ादी कश्मीर ने पाई कली-कली हर्षाई है
केशर की क्यारी ने फिर से केशरी गंध महकाई है
-कन्हैया लाल खरे
नहीं ग़ुलामी चाहिए, दिलों में न अपवाद।
आपस में खुलकर जियें, रहे देश आज़ाद।।
बाँध कफ़न सर पे चले ,करी जेल आबाद।
मरते दम तक ये कहा - रहे देश आज़ाद।।
जो सूली पे चढ़ गये, कर लो उनको याद।
क़ुर्बानी मत भूलना , रहे देश आज़ाद ।।
-अवधेश सिंह
है शहीदों की शहादत को नमन
ऐसी बलिदानी रवायत को नमन
हौसला जिसमें रहे जीता है वो ही
शौर्य की ऐसी कहावत को नमन
- डॉ. अंजु सुमन साधक
माँ के दूध के कर्ज़ें को,
सबको हम बतलाएँगे।
आओ,सीमा पर आओ
अब शत्रु मार भगाएँगे।।
फड़क-फड़क उठ जाएँ भुजाएँ,
किट-किट दाँत बजाएँगे।
तड़क-तड़क कर बिजली-सा हम,
खंज़र को खनकाएँगे।।
डमक-डमक डम डमरू लेकर
तांडव नृत्य रचाएँगे।
तीखी तिरछी करके भौहें,
शेरों-सा गुर्राएँगे ।।
ऐसे ही शेरों की माँ तो,
भारत माँ कहलाती है।।
-मृत्युंजय साधक
राष्ट्र पर्व पर है फ़हराता
राष्ट्रशोक पे ये झुक जाता
सैनिक गौरव कर लहराता
शहीद इसे पहन के आता
-मनोज द्विवेदी
माना कि इस रात की सुब्ह नही
पर ज़िंदगी यूँ बे-वज्ह नहीं
सच की ये लड़ाई है
गहरी बहुत खाई है
हो के अब तू निडर
चलती रह अपनी डगर.....
- पूनम कुमारी
अपनी डगर पर चलने वाली संस्था " पेड़ों की छाँव तले फाउंडेशन " का यह अदबी सफ़र यक़ीनन क़ाबिले तारीफ़ है और इस संस्था का लगाया हुआ पौधा आज एक बरगद की शक्ल ले चुका है। पेड़ों की छाँव तले - रचना पाठ के ज़रीये पेड़ों को कवितायें पहनाई जा रही हैं और अब कविताओं वाले इन पेड़ों की छाँव और भी घनी हो जाएगी , जिसमें बैठ कर थके-माँदे मुसाफ़िर अपनी थकान मिटा पाएँगे। कविताओं वाले इन पेड़ों का संगीत जंगलों में दूर दूर तक फ़ैल जायेगा लेकिन बक़ौल दुष्यंत कुमार -
पत्तों से चाहते हो बजें साज़ की तरह
पेड़ों से आप पहले उदासी तो लीजिये
NOTE :"पेड़ों की छाँव तले फाउंडेशन" के अघ्यक्ष श्री अवधेश सिंह का उनके सहयोग के लिए शुक्रिया।
अधिक जानकारी के लिए देखें -https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3335382766520529&id=100001465165698
इंदु जी धन्यवाद तो आपको है,हमारे सभी कवि मित्रों की ओर से और संस्था पेड़ों की छांव तले की ओर से । अदबी यात्रा में आपने साहित्यिक गतिविधियों को बड़ी संजीदगी से समेटा है । ढेरों शुभकामनाएं । बहुत बहुत आभार ।💐💐🙏
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