जगदीश कश्यप गली कीर्तन वाली , ग़ाज़ियाबाद में एक छोटे से कमरे में रहते थे। क़द लगभग पाँच फुट पाँच इंच ,रंग साँवला ,दरम्याना बदन , मिजाज़ में बेसब्री और ख़ुशदिल मेज़बान। लघुकथा लिखने की प्रेरणा मुझे उनसे ही मिली। लघु कथा साहित्य जगत में जगदीश कश्यप को कौन नहीं जानता। उनके घर पर लघु कथा विधा पर महाना गोष्ठिया होती थी जहाँ मुझे पहली बार लघुकथाएं सुनने का अवसर मिला और बाद में मैंने भी लघु कथा लिखनी शुरू कर दी। पिछले कुछ सालों में लघुकथा विधा काफी तेज़ी से उभर कर आयी है और बहुत-सी सांस्कृतिक संस्थाएं लघुकथा को केंद्रित कर विशाल साहित्यिक कार्यक्रम भी आयोजित कर रही है लेकिन उन दिनों अधिकांश लोग इस विधा से परिचित नहीं थे।
मैं जब भी जगदीश कश्यप को अपनी कोई भी लघुकथा सुनाता तो वो खुल कर तारीफ़ करते और अक्सर अँगरेज़ी में GOOD कहते। उनका GOOD शब्द का उच्चारण हिंदी के गुड़ शब्द जैसा होता जिसमे गुड़ जैसे मिठास लिपटी रहती। आज जगदीश कश्यप हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी बेशक़ीमती लघु कथाएं और उनका गुड़ जैसी मिठास वाला स्नेह आज भी मेरी लघु कथाओं को दुलारता रहता है।
इन्ही गोष्ठियों में महेश सक्सेना , महेश दर्पण और बलराम अग्रवाल से मुलाक़ात हुई थी। आजकल लघु कथा विधा में बलराम अग्रवाल एक बड़ा नाम है।
NOTE : जगदीश कश्यप - ( जन्म - 1-12-1949 , निधन - 17-8-2004 )
वो पुरानी बाते याद आती है
ReplyDeleteवो गुड़ की मिठास याद आती है
गुजर गया है जमाना
मगर वो पाँच फुट का व्यक्ति की बातें याद आती है ।
राही राज
बहुत सुन्दर संस्मरण है। इसमें बस एक सुधार कर लें। जगदीश कश्यप की लम्बाई 5'5" से कम नहीं थी। हालांकि कद अपनी कुछ कारस्तानियों से काफी घटा रखा था। अब, निधन के बाद, उनका कद आज पहले से कहीं ऊंचा है।
ReplyDeleteVery nice
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