Thursday, August 27, 2020

कीर्तिशेष देवराज दिनेश - मज़दूरों का मसीहा

 दिल्ली के आई टी ओ के चौराहे और Rouse   Avenue  ( अब दीनदयाल उपाध्याय   मार्ग )  के सिरे पर स्थित " आंध्रा एजुकेशन सोसाइटी हायर सेकेंडरी  स्कूल " से ही मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा  ग्रहण करी और इस  स्कूल से मेरी बहुत-सी यादे जुडी हैं।  यह स्कूल आज भी वही स्थित हैं, जब कभी आई टी ओ  चौराहे से गुज़रता हैं तो दूर से ही एक नज़र उसको निहार लेता हूँ।स्कूल से सटा हुआ एक गन्दा नाला  भी बहता था और स्कूल के पिछली तरफ़ के मैदान में एक पुरानी लोहे की तोप भी थी जिस पर अक्सर अपने दोस्तों के साथ बैठ कर गपशप किया करता  था।   

शायद १९७१-७२ की बात है , मैं , Rouse   Avenue  के फुटपाथ पर चल रहा था , तभी मैंने दूर से लगभग पाँच फुट वाले उस मोटे व्यक्ति को देखा , जिसकी नज़रे धरती की तरफ थी,बायें कंधे पर झूलता एक बैग था  और वह एक खास अंदाज़ में भारी क़दमों से आगे बढ़ता जा रहा था। राह में बैठा एक  भिखारी भीख की गुहार लगा रहा था , भिखारी के करीब  पहुँचते ही उस व्यक्ति ने अपनी दायी जेब से सौ रुपए का नोट निकाल भिखारी की झोली में डाल दिया था और बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ गया था। उनके भिखारी को पैसे देने के अंदाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी जेब खाली करना चाहते है और माया के बोझ से मुक्त होना चाहते है। उन दिनों  सौ रुपए  एक रक़म होती थी। अचानक मुझे वो चेहरा जाना पहचाना-सा लगा। हाँ , वही थे देवराज दिनेश जिन्हे मैंने शायद कुछ दिन पहले ही गाँधी नगर , ग़ाज़ियाबाद  में आयोजित एक कवि-सम्मेलन में सुना था।  मैंने यही  उन्हें पहली और  आख़िरी  बार सुना था।  यहाँ  उन्होंने जो कविता सुनाई थी वह  तो मुझे अब  याद नहीं लेकिन प्रसंग कुछ इस प्रकार का था कि एक सरकारी ऑफ़िसर अपने बच्चे के जन्मदिन पर अपने मित्रो को आमंत्रित करता  है और इस अवसर पर आमंत्रित अतिथि महँगे महँगे उपहार लाते हैं जैसे कि  टेलीविज़न , फ्रीज , घड़ी   अलमारी आदि लेकिन बच्चे के लिए कोई एक खिलौना   भी नहीं लाता । उनके  एक चर्चित गीत  के कुछ बंद देखें - 


मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये 


अम्बर  पर जितने तारे ,  उतने वर्षों से 

मेरे  पुरखों  ने धरती    का रूप सँवारा

धरती को सुन्दरतम करने की ममता में 

बिता चुका है कई  पीढ़ियाँ  वंश हमारा 


और  अभी   आगे आने   वाली सदियों में 

मेरे  वंशज     धरती का     उद्धार  करेंगे 

इस प्यासी धरती के   हित में ही लाया था 

हिमगिरि चीर,सुखद गंगा की निर्मल धारा


मैंने     रेगिस्तानों    की रेती धो -धोकर  

वंध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए


मैं मज़दूर  मुझे देवो की बस्ती से क्या 


धरा पर स्वर्ग बनाने  वाला  यह कवि विभिन्न रसायनों का   एक अद्भुत मिश्रण था।  जिस सहजता से आप प्रेम गीत लिखते थे उतनी ही सहजता से वीर रस की कवितायें भी।  इन्होने कुछ फिल्मों के लिए गीत लिखे और चंद फिल्मों में अभिनय भी किया।  कवि सम्मेलनों में अपनी पुरज़ोर आवाज़ में कविता सुनाते थे और ऐसा लगता था जैसे कोई मदारी तमाशा  दिखा  रहा हो।  श्रोता अक्सर  उनके कविता पाठ  से सम्मोहित हो जाते थे और उनकी कविता का जादू एक लम्बे अरसे तक श्रोताओं के  ज़हन और रूह में बना रहता था। कविता और गीत के अलावा देवराज दिनेश ने एकांकी भी लिखी।  उनका कविता संग्रह - गंध और पराग एवं एकांकी मानव प्रताप  पुस्तकें अत्यंत  लोकप्रिय  हुई।   

दुःख की बात है कि इतने बड़े कवि के विकी पेज पर बहुत ही कम जानकारी है और उनका कोई वीडियो भी मुझे मिल नहीं पाया। धरती पर स्वर्ग बनाने वाले ऐसे कवि फिर फिर धरती पर आते ही रहेंगे पर क्या हमारा समाज और देश उनका समुचित सम्मान कर पायेगा ?ऐसे बहुत से देश हैं जहाँ शिक्षक और कवि -लेखक  का ओहदा और इज़्ज़त राजनैतिक नेताओं और सरकारी अफ़सरों से अधिक होती है लेकिन हमारे देश में ऐसा यक़ीनन नहीं हैं, लेकिन कब तक ?



जन्म - २२' जनवरी , १९२२ - जलालपुर जट्टा ( अब पकिस्तान में )

निधन - १२' सितम्बर , १९८७ - दिल्ली 

1 comment:

  1. बेहतरीन और प्रासंगिक स्मृतिशेष में देवराज दिनेश को आपने उस समय ब्लॉग पर लिखा जब शायद मजदूरों की समस्या जमीन पर हल करने के बजाय स्क्रीन और आंकड़ों में हल की जा रही है । बधाई शुभकामनाएं

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