Bántani én nem akarlak
मैं दुखी नहीं करना चाहता तुम्हें
मैं दुखी नहीं करना चाहता तुम्हें
अपने शब्दों का लिबास ओढ़ाता तुम्हें
सोते हुए अक्सर मैं निहारता तुम्हें
नाराज़ होता नहीं कभी मैं तुमसे
लेकिन दुखी तुम्हे नहीं तो करूँ किसे
यह मेरा गुनाह , वह तुम्हारा गुनाह
चाहते हुए , न चाहते हुए भी, आह
मेरी मृत्यु पसरती है तुम्हारे भीतर
तुम से जने हुए मेरे बच्चे के साथ
मेरी मौत की तुम बनती भागीदार
यहाँ वह सब होगा , सुना तुमने
जो हो सकता है इस दुनिया में
तुम से जुड़ा मेरा अटूट बंधन है
एक अटल , सुखद , विशवास है
दूर वो तारामंडल और ब्रह्माण्ड
अक्सर दिलाते हैं तुम्हारी याद,
याद आते हैं तुम्हारे गुनाह,पर यार
तुम्हें नहीं तो किसे प्यार करूँ मैं।
कवि - Kányádi Sándor
अनुवादक -इन्दुकांत आंगिरस
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