Tuesday, August 11, 2020

कीर्तिशेष कबीर अजमल - चिराग़े शब का फ़साना


 बनारस अपने आप में एक अद्भुत शहर है।  यूँ तो बनारस तीन चीज़ों के लिए मशहूर है - बनारसी साड़ियाँ , बनारसी पान और बनारसी ठग लेकिन इस सर ज़मीन ने हिन्दुस्तान को अंतरराष्ट्रीय    ख्याति के संगीतकार और नामवर शाइर भी दिए है। इस शहर की गंगा जमुनी तहज़ीब से उभरा ऐसा ही एक अज़ीम शाइर आज अदबीयात्रा के सफ़र में अपने नक़्शे पा दर्ज़ कर रहा है।  

हवा की ज़द पे  चिराग़े शबे फ़साना था 

मगर हमे भी उसी से दिया  जलाना था 


चिराग़े शब से दिया जलाने वाले शाइर जनाब कबीर अजमल बनारस घराने के अज़ीम शाइर थे। १९६७ में बनारस में जन्मा यह शाइर अपनी अदबी फ़ितरत का ख़ुद एक ब्यान था। इन्होने बहुत कम उम्र में शे'र कहना शुरू कर दिया था और इनके उस्ताद जनाब शौक़त मज़ीद थे। इनकी  शाइरी में हिज्र  और विसाल  के कई नए पहलू देखने को मिलते हैं। उनकी ग़ज़लों की एक किताब -'मुन्तशिर लम्हों का नूर ' प्रकाशित हो चुकी है। मुशायरों में आना -जाना कम था लेकिन अदबी दुनिया में बहुत से  शाइर उन के क़लाम से परिचित थे। मुशायरों के गिरते हुए स्तर पर भी उन्होंने अपनी चिंता दर्ज़ करी है -

मेरा शाइर लतीफ़े लिख रहा है 

बहुत दुशवार   होता जा रहा हूँ 

बनारस में रहने के कारण पहले साड़ियों का काम करते थे लेकिन बाद में अपनी प्रिंटिंग प्रेस लगा ली थी।दुनियादारी निभाते रहे लेकिब शाइरी को अपनी रूह से लिपटायें रखा। उनकी शाइरी का जादू श्रोताओं के सर  चढ़ कर   बोलने लगा ,विशेष रूप से बनारस की अदबी संस्थाओं में उनका नाम बड़ी इज़्ज़त से लिया जाता रहा है।उनके चंद शे'र देखे - 


बुझती रगों में नूर बिखरता   हुआ-सा मैं

तूफ़ाने  नंगे मौज   गुज़रता  हुआ-सा मैं 


मौजे  तलब में   तैर गया था बस एक नाम 

फिर यूँ हुआ कि जी उठा मरता हुआ-सा मैं  


काश ऐसा हो पाता और  यह शाइर मरते मरते एक बार फिर से जी उठता लेकिन २९ जून २०२० मौत की गहरी नींद से नहीं उठ पाया। आप  कई सालों से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ रहे थे।  अफ़सोस कि ५३ साल की कम उम्र में ही उन्हें इस सराये फ़ानी से गुज़रना पड़ा लेकिन उनका क़लाम आज भी हमारे बीच हैं।  यक़ीनन उनकी रूह फिर किसी शाइर का लिबास ओढ़ कर हमे कही न कही ज़रूर मिल जाएगी। 

आज फिर  मीर तक़ी मीर का शे'र याद आ गया - 

मौत एक मांदगी  का वक़्फ़ा है 

यानी, आगे  चलेंगे  दम लेकर 



वास्तविक नाम - अब्दुल कबीर 

उपनाम -           कबीर अजमल 

जन्म  -             २१ मई १९६७ 

निधन  -           २९ जून २०२० 



NOTE - उस्ताद शाइर जनाब गुफ़रान अमजद को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया।  

2 comments:

  1. Real tribute to KABEER ajmal a very sincere and noted poet

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  2. So nice to read & know about such unsung talents.....'Suri'

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