मुग़ल सम्राट शाहजहां द्वारा बसाया गया शहर शाहजहानाबाद या'नी पुरानी दिल्ली एक ज़माने में इतनी हसीन और शोख़ थी कि उस्ताद इब्राहिम ज़ौक़ ने भी दिल्ली कि गलियाँ छोड़ के जाने के लिए मना कर दिया था। दिल्ली सात बार उजड़ी और सात बार बसी और दिल्ली पर कई वंशों ने शासन किया। आख़िरी मुग़ल बादशाह के दौर में
दिल्ली अपने जोबन पर थी इसीलिए उस्ताद ज़ौक़ ने कहा -
इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र ए सुख़न
कौन जाये 'ज़ौक़' पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर
एक ज़माने में दिल्ली के चाँदनी चौक बाज़ार में फ़ैज़ नामक नहर बहती थी। नहर के दोनों तरफ़ पीपल और नीम के पेड़ और दुकानें। मुग़ल दरबार से लोग किश्तियों में बैठकर सौदा ख़रीदने के लिए आते थे। हर तरफ़ रंगीनियां बिखरी पड़ी थी,संगीत और शाइरों की मजलिसे देखने को मिलती थी। उर्दू के मशहूर शाइर जनाब मीर तक़ी मीर किन्ही कारणों से आगरा छोड़ कर दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे। इस सिलसिले में उनका एक शे'र देखे -
शिकवा ए आबला अभी से ' मीर '
है पियारे हनूज़ दिल्ली दूर
मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से दिल्ली की तबाही भी देखी थी। अहमद शाह अब्दाली की लूट का हाल मीर तक़ी मीर ने अपनी किताब 'ज़िक्रे मीर ' में ब्यान किया है।
अब ख़राबा हुआ जहानाबाद
वरना हर इक क़दम पे यां घर था
दिल्ली कि बर्बादी को ब्यान करता मीर तक़ी मीर एक और शे'र देखे -
दिल्ली में आज भीख भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक़ दिमाग़ जिन्हे ताजो -तख़्त का
मैं दिल्ली में ही पैदा हुआ , दिल्ली में ही पला-बढ़ा और पुरानी दिल्ली में ही मेरा बचपन गुज़रा। २००६ में नौकरी के सिलसले में बैंगलोर आना पड़ा और तभी से बैंगलोर में ही रह रहा हूँ। पुरानी दिली कि गलियाँ आज भी बहुत याद आती है ,हालांकि अब पुरानी दिल्ली पहले जैसी नहीं रही। अब सब कुछ व्यवसायिक हो गया है , न पहले जैसे लोग रहे और न पहले जैसी गलियाँ। न वो कटरे और कटरों में गलियाँ और गलियों में गलियाँ , न वो कूचे और कूचों में गलियाँ और गलियों में गलियाँ...
जिन गलियों में अक्सर घूमता था उनमे से कुछ नाम आज भी याद है -
कटरा गोकुल शाह , चूड़ीवालान ,कूचा पाती राम, गली आर्य समाज, लाल दरवाज़ा, गली शीश महल, लाल कुआं, बाज़ार सीता राम, गली मुर्गे वाली ,फ़र्राशखाना ,चावड़ी बाज़ार, नई सड़क ,तुर्कमान गेट ,अजमेरी गेट, हौज़ काज़ी, पत्थर वाले ,दरीबा कलां,चाँदनी चौक, हवेली हैदर कुली, खारी बावली, कटरा नील, चौक शाह मुबारक ,गली क़ासिम जान , बल्लीमारान , फतेहपुरी बाज़ार आदि
फ़ारसी की एक मशहूर कहावत याद आ गयी -
" आदमी का दाना - पानी और उसकी मौत उसको खींच कर ले जाती है "
- मेरा दाना -पानी बैंगलोर से अभी उठा नहीं और अपनी मौत का मुझे पता नहीं।
हनूज़ दिल्ली दूर ...............दिल्ली अभी दूर है
दिल्ली की बात ही अलग है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से दिल्ली की खूबसूरती को बयां किया।क्योंकि दिल्ली वाले हो।सबसे बडी बात पुरानी दिल्ली की जवान गलियों का जिक्र बहुत खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत ही बढिया रुचिकर ।
ReplyDeleteमेरा जन्म पहाडगंज है। अपने पिता से यही नाम सुने।