कीर्तिशेष सतीश सागर सुप्रसिद्ध कवि,पत्रकार,कहानीकार,समीक्षक व प्रखर वक्ता थे। उन्हें लगभग तीस वर्षों से भी अधिक पत्रकारिता का अनुभव था।नवजीवन , कैपिटल रिपोर्टर और वीर अर्जुन अख़बार में उन्होंने रिपोर्टर और उप सम्पादक के रूप में कार्य किया। लगभग २८ वर्षों तक हिंदुस्तान हिंदी दैनिक में कार्य करते रहे और बाद में वरिष्ठ उप सम्पादक के पद से रिटायर हुए। पत्रकारिता में रहते हुए रिपोर्टिंग,सम्पादन,आलेखन आदि सभी प्रकार के कार्य किये।
सतीश सागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे लेकिन एक कवि के रूप उनकी एक विशिष्ट पहचान थी। सतीश सागर मूलतः व्यंग्य तथा आक्रोश के कवि हैं।उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर सत्ता व व्यवस्था के भ्रष्ट व निर्बल बिन्दुओं का सबल व आक्रोशमय प्रतिरोध मिलता है,वहीं सामान्यजन के प्रति पक्षधरता का स्वर उच्चता के साथ मिलता है।इस क्रम में साधारण व्यक्ति के प्रति उनकी दृष्टि संवेदनात्मक तथा व्यवहार सहानुभूतिपरक रहता है। कई सम्पादित संकलनों में कविताएँ प्रकाशित।बड़ी तथा छोटी सभी पत्रिकाओं में बहुत सारी कविताएँ प्रकाशित।आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी रचनाएँ प्रसारित।अपने पिता कीर्तिशेष विद्यासागर वसिष्ठ की पुण्यतिथि १७ सितम्बर को 'अग्रसर ' संस्था के तत्वावधान में अपने अग्रज डॉ सुभाष वसिष्ठ के साथ मिलकर पत्रकारिता विमर्श और काव्य गोष्ठी का लगभग ३० वर्षों तक निरंतर आयोजन करते रहे। उनके हाथ का लिखा पीले रंग का पोस्ट कार्ड आज भी शायद घर में कही मिल जाये।
दिल्ली,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र,आन्ध्र प्रदेश,पंजाब,हिमाचल प्रदेश आदि देश के लगभग सभी क्षेत्रों में आयोजित अनगिनत कवि-सम्मेलनों में सतीश सागर ने काव्य-पाठ किया था। विशेष बात यह रही उनके काव्य-पाठ में,कि,वे कवि-सम्मेलनों में वहीं कविताएँ पढ़ते थे,जो कवि-गोष्ठियों में पढ़ते थे या जिन्हें छपने भेजते थे,जबकि बहुधा ऐसा नहीं होता।उनकी कविताएँ स्तरीय तो होती ही थीं,सम्प्रेषणीय भी होती थीं और जनता से सीधे जुड़ती भी थीं।उनकी कविताओं में उनकी पत्रकारिता की झलक भी देखने को मिलती है। बानगी के लिए उनकी एक कविता देखें -
हालात सामान्य रहे थे
अख़बार बोले
रेडियो ने बाँग दी
टी.वी.ने ये शब्द कहे
कल रात शहर के
हालात सामान्य रहे
कहीं ख़ूनी
सैलाब नहीं भड़का
साम्प्रदायिक शोला
नहीं धड़का
बंदूकों ने
आग नहीं उगली
कहीं लूट-खसोट
डकैती,हत्या की
होली नहीं जली
सिर्फ़ दो संगीनों
दो ख़ाकी वर्दियों ने
मासूम झोंपड़े पर
कहर ढाया
सारंगी ने
शोक गीत सुनाया
सुबह झोंपड़े में
अश्लील चित्र
शराब की बोतलें
चिथड़ा-चिथड़ा साड़ी
और
एक औरत की लाश
शहर को
आवाज़ दे रहे थे
जी हाँ
कल रात
शहर के हालात
सामान्य रहे थे ।
जब तक मैं दिल्ली में रहा सतीश सागर से अक्सर मुलाक़ात होती रहती थी क्योंकि मैं अँगरेज़ी अख़बार स्टेट्समैन में काम करता था और उनका दफ़्तर मेरे दफ़्तर से केवल पाँच मिनट पैदल की दूरी पर था। उन दिनों मैं भी हिंदी-अँगरेज़ी अख़बारों में निरंतर कुछ न कुछ लिखता रहता था। अक्सर किसी न किसी साहित्यिक कार्यक्रम की रिपोर्ट के प्रकाशन के सिलसिले में भी उनके पास जाता था। मुझे चाय पिलाये बिना कभी नहीं छोड़ते थे , फ़ोन करके डॉ धनंजय सिंह और श्री महेन्दर शर्मा को भी हिंदुस्तान टाइम्स की कैंटीन में ही बुलवा लेते और फिर वही क़िस्सागोई और गपशप। सतीश सागर बहुत ही विनम्र ,मिलनसार ,बेफ़िक्र, ख़ुशदिल और ज़िंदादिल इंसान थे।सतीश सागर नौकरों,ड्राइवरों,चौकीदारों, दूधवालों,दुकानदारों और दूसरे ग़रीब लोगो से भी दिल खोल कर मिलते थे। उनसे की गयी मुलाक़ाते आज भी मेरे ज़हन में ताज़ा है। अफ़सोस कि दिल्ली के इस दीवाने , दिलवाले कवि की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से ही हो गयी।
उनकी दीवानगी पर अपना ही एक शे'र याद आ गया -
हर किसी के साथ हो लेता हूँ अपना जानकर
और जो कह लो मुझे लेकिन मैं दीवाना नहीं
वास्तविक नाम - सतीश वसिष्ठ
उपनाम - सतीश सागर
जन्म - १५ अगस्त १९५५ , दिल्ली
निधन - ४ दिसंबर २०१७, दिल्ली
NOTE : डॉ सुभाष वसिष्ठ को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद।
प्रिय डा इंदु जी,सतीश सागर पर बहुत अर्थवान तथा उल्लेखनीय आलेख प्रस्तुत किया है आपने।कविता भी सार्थक व मूल्यवान है।आज भी प्रासंगिक है।
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ!
'अदबीयात्रा' अपने इसी बेहतरीन अन्दाज़ में गतिमान रहे,इस हेतु शतशः शुभकामनाएँ! -- डा सुभाष वसिष्ठ