तुम अमर बनो
हम तो जन्म हैं
बार- बार बाँहों में मृत्यु को कसेंगे
मृत्यु को अपनी बाँहों में बार बार कसने वाला गीतकार श्याम निर्मम के अलावा कौन हो सकता है। जिसने अपनी तमाम उम्र ही ज़िंदगी से लड़ते लड़ते निकाल दी हो , मौत को उसकी नहीं तो किसकी बाँहों में सुकून मिलेगा ?
डॉ श्याम निर्मम से मेरी पहली मुलाक़ात शायद डॉ धनंजय सिंह के साथ ग़ाज़ियाबाद से दिल्ली जाने वाली सुबह की रेलगाड़ी मेरठ शटल में ही हुई थी। मैं भी उन दिनों ग़ाज़ियाबाद से दिल्ली रेलगाड़ी से जाया करता था। हम तीनों का दफ़्तर दिल्ली के कनॉट प्लेस में ही था। मैं स्टेट्समैन में काम करता था, डॉ धनंजय सिंह, कादम्बिनी में और श्याम निर्मम NDMC की पत्रिका पालिका समाचार में कार्य करते थे , इसीलिए कई बार हमारी मुलाक़ाते कनॉट प्लेस में ही होती थी।
पालिका समाचार में अपनी रचनाओं के प्रकाशन हेतु या पारिश्रमिक के सिलसिले में , मैं अक्सर उनके दफ़्तर भी जाया करता था। श्याम निर्मम अत्यंत सहज,सरल, विनम्र , ख़ुशदिल और ज़िंदादिल इंसान थे। हमेशा मेरी जमकर ख़ातिरदारी करते और कभी अगर लंच के समय वहाँ होता तो अपने घर का टिफ़िन मेरे साथ ज़रूर साझा करते। मेरे प्रति उनके प्रेम को आज भी हृदयतल की गहराइयों से महसूस करता हूँ।
डॉ श्याम निर्मम ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ कही लेकिन गीत उनकी आत्मा थी, उनके अपने शब्दों में - " कविता को सदा अपने पास पाया और उसे लिखने पर एक परम आनंद जैसा सुख मिला। यह सुख-क्षण ही शायद मुझे बार-बार गीत लिखने को विवश करता है और प्रेरित भी करता है। यूँ अनेक विधाओं में रचनाकर्म किया है ,पर सबसे अधिक संतुष्टि मुझे गीत लिखने पर ही हुई है।" श्याम निर्मम ने अपने गीतों में ज़िंदगी की त्रासदी को बख़ूबी उकेरा है , बानगी के लिए उनके एक नव गीत की यह पंक्तियाँ देखें -
फूलों ने वसंत आने पर गुलदस्ते बाँटे
पर जाने क्यों अपने मन में चुभे बहुत काँटे
अम्मा रोगी -
बाबू जी का चश्मा बना नहीं
बच्चों की पिछली फ़ीसों का क़र्ज़ा चुका नहीं
डॉ श्याम निर्मम अपने ख़ास तरन्नुम में गीत पढ़ा करते थे। उन्होंने देश भर के अनेक कवि-सम्मेलनों में अपने गीतों का पाठ किया , कवि-सम्मेलनों के अलावा दिल्ली , लखनऊ , इलाहाबाद ,ग्वालियर , राजकोट , भोपाल , मुंबई आदि अनेक आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्र से अपनी रचनाओं की प्रस्तुति की। देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। देश के अनेक श्रेष्ठ रचनाकारों की पुस्तकों की भूमिका भी लिखी। गीत विधा में उनकी गहरी पैठ थी जिसके चलते उन्होंने मूर्धन्य गीतकार पंडित वीरेंद्र मिश्र के कई गीत संग्रहों का सम्पादन भी किया। लगभग ३८ वर्षों तक पालिका समाचार से सम्बद्ध रहकर ,वही से कार्यकारी सम्पादक के पद से सेवानिवृत हुए।
उनके एक दूसरे नव गीत की चंद पंक्तिया देखें -
ये कैसी अनहोनी
जीवन विष पीते बीता
उम्र बढ़े हर रोज़
मगर ये अश्रु पात्र रीता
मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि नित जीवन विष पीने वाले इस गीतकार ने हिन्दी साहित्य को अपने मीठे गीतों से अत्यंत समृद्ध किया है । अफ़सोस कि मृत्यु को अपनी बाँहों में कसने वाले इस गीतकार को एक दुखद दिन,मृत्यु ने ही अपनी बाँहों में सदा सदा के लिए समेट लिया,लेकिन मर मर कर भी जीना कोई उनसे सीखे , उन्ही की ग़ज़ल का यह शे'र देखें -
रोज़ ही सौ बहाने किये
जिस तरह जी सके हम जिये
उनकी प्रकाशित पुस्तकें -
हाशिये पर हम - नव गीत संग्रह
चक्रव्यूह तोड़ते हुए - कविता संगह
लो मैं आ गया तथागत - गौतम बुद्ध पर केंद्रित कविता संग्रह
पंछी गुमसुम पिंजरे में - ग़ज़ल संग्रह
वास्तविक नाम - श्याम बिहारी कौशिक
कवि उपनाम - श्याम निर्मम
जन्म - १ अगस्त ' १९५० , सिकंदराबाद ( उत्तर प्रदेश )
मृत्यु - २४ दिसंबर ' २०१२ , नई दिल्ली
NOTE : उनके सुपुत्र श्री पराग कौशिक को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया।
इंदु जी, आपसे प्रभावित हूँ, आपकी लेखनी अतीत में खोए हुए शब्दों में आक्सीजन भर सकती है । यह श्याम निर्मम (कौशिक) जी को आपके द्वारा दी गयी शब्दांजली से प्रतीत होता है, हार्दिक शुभकामनाएं, बधाई।
ReplyDeleteप्रिय भाई श्री इंदु कान्त जी,प्रिय मित्र श्याम निर्मम के बारे में जिस आत्मीयता के साथ आपने लिखा है,वह प्रशंसनीय है।
ReplyDeleteआपकी निरन्तर सक्रियता को साधुवाद।
हार्दिक शुभकामनाएँ!
श्याम निर्मम जी की कुछ कविताएं मैंने पढ़ी हैं । इनके गीत मनुष्य को जीते हैं । मानवीय संदर्भों के अद्भुत गीतकार का सादर नमन ।
ReplyDeleteश्याम निर्मम जी की कुछ कविताएं मैंने पढ़ी हैं । इनके गीत लोक संवेदना को जीते हैं । मानवीय संदर्भों के अद्भुत गीतकार को सादर नमन ।
ReplyDeleteकोई नग़्मात कहते कहां बनता है...
ReplyDeleteसुखनवर दिल है, कहां संभलता है।।
््््््््््््््
मीर तो कह गये रोने की हकीकत
नम कागज़ पर कौन लिखा करता है।।
्््््््््््््््
ग़म का इलाज चारागर के पास नहीं
निर्मम नहीं वो,ख्वाब में तो मिलता है।।
्््््््््््््््
सफ़र में मिला और बढ़ा दी मंजिल
कभी जरीदा में,कभी जे़हन में मिलता है।।
्््््््््््््््
उसका दीबाचा लिख रहे हैं दोस्त अभी
पुरअश्क हूं,पैग़ाम से भी डर लगता है ।।
हमराह_प्रताप सिंह.वसुन्धरा।