Friday, August 7, 2020

फ़क़ीरों की बादशाहत

                     जीवन में किसी सच्चे फ़क़ीर  का मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं। आजकल  जब इंसान भी ढूंढ़ने से नहीं मिलता वहाँ किसी फ़क़ीर का मिलना नसीब की ही बात है।  मीर तक़ी 'मीर' द्वारा रचित उनकी   आत्मकथा    ' ज़िक्रे मीर ' में  एहसान उल्ला नामक एक फ़क़ीर ने सच्चे फ़क़ीरों के बारे में कुछ यूँ  कहा है -

" असल में मिलने - जुलने वाले फ़क़ीर वे हैं जो तमाम चीज़ों से इस क़दर बेपरवाह हैं कि वह किसी पेड़  के साये का बोझ भी पसंद नहीं करते।  ये वह नंगे बदन वाले फ़क़ीर हैं जिन्होंने अपनी ज़ात को ख़ुदा की  ज़ात में गुम कर दिया है। ये वह लंगोट बाँधने वाले फ़क़ीर हैं जो हर समय बुरी ख़्वाइश से लड़ते हैं। अगर मिलना है तो इन दुखी दिल फ़क़ीरों से मिलो , जो सब कुछ भूल गए हैं , जिनका सर हर वक़्त झुका रहता है , जो बहते हुए पानी की तरह साफ़ पाक़ हैं , जो इस जंगल के शेर हैं और दिल का ख़ून पीते हैं, जो सागर हैं मगर जोश नहीं मारते , जो सैलाब हैं मगर उमड़ते नहीं , जो मुहब्बत की गलियों के ख़ाकसार हैं , दीवानगी के जंगलों में फिरते रहते हैं , जिन्होंने ख़ुदी को  पा लिया , जो आवारा हैं मगर दिल के नज़दीक हैं ,जो महबूब के जलवों में खोये हैं , जो महबूब की दीवार तले सोये हैं।  वे हक़ीक़त का राज़ जानने वाले  पीरमुरीदी करने वाले हैं।  ये आवारा लोग हैं जो अपनी मंज़िल को पहुँच   चुके हैं। उनके साये से सूरज उभरता है।  अगरचा ये ज़मीन पे रहते  हैं , मगर उनकी शान आसमानों की तरह बुलंद है।  अगरचा ये तन्हाई में हैं मगर उनका नाम दूर तक मशहूर है।  ये वफ़ा और मुहब्बत के सौदाई हैं , हया और शर्म के बाग़ की अछूती कली हैं। उनका तकिया सख़्त पत्थर है उनके बग़ल में मुहब्बत का निशान है । ये पेट पर पत्थर बाँध लेते हैं  लेकिन शिकायत नहीं करते ; रोटी की लालच नहीं रखते ,अगर मज़ेदार खाना मिल जाये तो उसकी ओर देखे भी नहीं , गर्म रोटी सूखी रोटी की तरह खाते हैं।  ये अजीब सूखे हुए चेहरे के लोग हैं कि इनको बीमार कहा जाता है । इतने ग़ैरतदार हैं कि जिस पर मरते हैं उसकी तरफ़ देखते भी नहीं।  ये इतने ख़ुद्दार हैं कि जब तक महबूब के नाज़ -अदा  की तलवार न   बिछा लें वहाँ  बैठते नहीं। उस हक़ीक़ी महबूब को हर वक़्त खोजते रहते हैं जिससे उनको लगाव है।  वे ऐसे जंगजू हैं कि उन्होंने बेहतर फ़िरकों से सुलह कर लिया है । वे ऐसे कीमिया बनाने वाले हैं कि हज़ार बार मिटटी से सोना बना चुके हैं।  इस दुनिया के कारख़ाने पर  कब्ज़ा करने वाले फ़क़ीर ही हैं।  तुझे जो हासिल करना हो तो उनके पास जा  , जैसे ही दुआ के लिए हाथ उठाया सब मिल जाएगा।  फ़क़ीरों की बात करों , उनका सहारा लो ओर जहाँ तक  हो सके उनकी सोहबत में उठते - बैठते रहो क्योंकि हक़ीक़त के दरिया का रास्ता एक ताला है ओर उन लोगो की ज़बान उसकी कुंजी है।  दरिया के सीने पर जांनमाज़ बिछा देना ओर डूबने के अंदेशे  से छुटकारा हासिल करना इन फ़क़ीरों का अंदाज़ है। "


एक ज़माना था जब मुझे किसी  सच्चे फ़क़ीर से मिलने की बहुत चाह थी ओर दिल्ली में ही एक दिन ये चाह पूरी हुई भी ओर नहीं भी। 

वाक़या कुछ यूँ है कि एक दिन मैं लगभग सुब्ह छह बजे के क़रीब अपने स्कूटर से रिंग रोड पर जा रहा था कि अचानक एक ऑटो रिक्शा से मेरा स्कूटर भिड़ गया ओर मैं सीने  के बल सड़क पर गिर पड़ा।  स्कूटर की गति बहुत कम थी सो कोई बाहरी चोट तो नहीं आयी लेकिन मेरे सीने में हल्का हल्का दर्द होने लगा।  एक दो दिन मैंने  इस दर्द की पवाह नहीं करी लेकिन तीसरे दिन यह दर्द पूरे सीने में फ़ैल गया।  मेरी पत्नी ने मुझे डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी लेकिन इसी बीच एक चमत्कार हो गया।  मैं अपने मुहल्ले में ही स्कूटर से अपने घर की तरफ़ जा रहा था।  तभी मेरी नज़र दूर सड़क के किनारे  बैठे एक  नंग -धडंग फ़क़ीर पर पड़ी।  इसी बीच मेरे फ़ोन की घंटी बजी ओर जब मैंने फ़ोन सुनने के लिए स्कूटर रोका तो उस फ़क़ीर के बिलकुल क़रीब पहुँच गया था।  मैं स्कूटर पर बैठे बैठे ही  अपनी ज़ेब से फ़ोन निकाल कर सुनने लगा।  इसी बीच वह फ़क़ीर खड़ा हो गया । उसके एक हाथ में  काँसा था ओर दूसरे हाथ में दो मुहँ वाली हड्डी थी। उन्होंने उस हड्डी से मेरे सीने पर हवा में ही  क्रॉस बनाया ओर इससे पहले कि मैं उस काँसें में कुछ डाल पाता फ़क़ीर बाबा   उलटी दिशा में आगे बढ़ गए। उनके जाने के लगभग पाँच सेकंड के बाद ही मेरी फ़ोन की बात खत्म हुई ओर मैंने तत्काल पीछे मुड़कर देखा ,लेकिन उस बंद गली में दूर दूर तक वो फ़क़ीर नहीं था।  लगभग दो मिनट बाद जब मैं अपने घर पहुँचा तो मेरे सीने का भीषण दर्द बिलकुल गायब हो चुका था ओर यह किसी चमत्कार से कम नहीं था।  


मुझे इस बात का बहुत अफ़सोस रहा कि मैं उस फ़क़ीर से बातचीत नहीं कर सका , शायद ईश्वर  की यही इच्छा थी। 

उर्दू के मशहूर शाइर जनाब मीर तक़ी ' मीर ' का यह शे'र   याद आ गया -


फ़क़ीराना    आये सदा   कर चले 

मियां ख़ुश रहो हम दुआ कर चले 


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