Tuesday, September 1, 2020

Dr. Köves Margit - हंगेरियन - हिन्दी विदुषी



 जैसा कि मैंने पहले भी ज़िक्र किया था कि हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में कई विदेशी विद्वानों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसी कड़ी में आज आपका परिचय हंगेरियन एवं हिन्दी भाषा की विदुषी   डॉ कौवेश मारगित से करवा रहा हूँ। आपकी मातृभाषा तो हंगेरियन है लेकिन हंगेरियन के अलावा आप अँगरेज़ी , तुर्की , जर्मन , रूसी और हिंदी भाषा की भी मर्मज्ञ  हैं।

डॉ कौवेश मारगित कई वर्षों से भारत में रह रही हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय एवं दिल्ली विश्विद्यालय में बरसों से हंगेरियन भाषा के प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं। हिन्दी भाषा से आपका विशेष लगाव हैं या यूँ समझिये कि हिन्दी भाषा से उन्हें  अगाध  प्रेम हैं। हिन्दी भाषा के प्रति अपने प्रेम को आप कभी कभी यूँ भी उजागर करती हैं , उन्ही के शब्दों में - " मैं तो हिन्दी से बहुत प्रेम करती हूँ लेकिन हिन्दी मुझसे उतना प्रेम नहीं करती "।   हिन्दी भाषा उन्हें उतनी ही प्रिय हैं जितनी हंगेरियन , अगर हंगेरियन उनकी मातृभाषा हैं तो हिन्दी उनके हृदय की भाषा है। 

मेरी उनसे पहली मुलाक़ात एक शाम  हंगेरियन सांस्कृतिक केंद्र ,दिल्ली में ही हुई थी। उन दिनों मैं   हंगेरियन सांस्कृतिक केंद्र में  हंगेरियन भाषा सीख रहा था और हंगेरियन भाषा में सर्टिफिकेट कोर्स पूरा कर चुका था।  जब मैंने उन्हें अपने बारे में बताया तो उन्होंने मुझे अगले दिन अपने घर पर आने के लिए आमंत्रित किया।  उन दिनों आप JNU के कैंपस में रहती थी।  मैं निर्धारित समय पर उनके घर पहुँच गया।  उन्होंने मेरी हंगेरियन भाषा की परीक्षा ली और उसकी बिना पर ही मुझे दिल्ली विश्विद्यालय में हंगेरियन डिप्लोमा कोर्स में दाखिला मिल गया ।  उन दिनों Department of Slavonic and  Finno - Ugrian Studies  दिल्ली के साउथ कैंपस में हुआ करता था। हंगेरियन भाषा में डिप्लोमा कोर्स समाप्त होने पर मुझे हंगेरियन भाषा के गहन अध्ययन के लिए इंडो हंगेरियन कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत हंगरी में हंगेरियन भाषा पढ़ने की सरकारी छात्रवृति मिल  गयी। बस तभी से हंगेरियन साहित्य   का हिन्दी अनुवाद शरू कर दिया।  अनुवाद का सभी कार्य कौवेश मैडम की देख रेख में ही होता रहा।  उनकी मदद के बिना हंगेरियन भाषा से हिन्दी अनुवाद संभव ही नहीं था।


डॉ कौवेश मारगित  अत्यंत सहज ,सरल,विनम्र , ख़ुशदिल और ज़िंदादिल इंसान हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही सराहनीय हैं । यक़ीनन उनके हृदय  में माँ सरस्वती का वास है और माँ सरस्वती के आशीर्वाद  से ही उन्होंने हंगेरियन और हिन्दी भाषा एवं  साहित्य की अतुलनीय सेवा की है। उन्होंने स्वयं तो हंगेरियन साहित्य का हिन्दी अनुवाद किया ही है , साथ साथ अपने विद्यार्थियों को भी अनुवाद  कार्य की लिए प्रेरित किया है।  उनसे हंगेरियन भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है लेकिन  इन्दु मजलदान , जतिन कौशिक , इन्दुकांत आंगिरस , वंदना शर्मा और हिमानी पाराशर के  नाम उल्लेखनीय हैं।  डॉ कौवेश मारगित ने कुछ प्रतिष्ठित साहित्यकारों , जिनमे  असग़र वजाहतप्रमोद नांगया और गिरधर राठी   के नाम उल्लेखनीय हैं ,  के साथ मिलकर भी हंगेरियन साहित्य का हिन्दी अनुवाद कर हिन्दी साहित्य को अधिक समृद्ध   किया है। हंगेरियन भाषा से  हिन्दी में अनूदित चंद पुस्तकों के नाम देखें -

वित्त मंत्री का नाश्ता ,आनंदघन,रंग और वर्ष ,अभिनेता की  मृत्यु,हंगेरियन लोक कथाएँ,दस आधुनिक हंगरी कवि ,गेज़ा बाबू ,परियों की कहानियाँ,सात पैसे और अन्य हंगरी  कहानियां,चकोरी ,रानी का लहँगा .दरवाज़ा ,स्नेह को मार्ग ,रिश्तेदार ,बदसूरत लड़की ,राहगीर और चाँदनी रात का सफ़र ,अरान्य यानोश - कथागीत एवं कविताएँ, प्यारी अन्ना , आदि  

केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के सौजन्य से डॉ कौवेश मारगित द्वारा रचित " हंगेरियन -हिन्दी वार्तालाप पुस्तिका " हंगेरियन और हिन्दी सीखने वाले विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।डॉ कौवेश मारगित का हिन्दी और हंगेरियन साहित्य के प्रति समर्पण को देखकर जनाब सीमाब सुल्तानपुरी का यह शे'र याद आ गया :

            मैं इक  चिराग़ लाख चिराग़ों में बँट गया 
            रक्खा जो आईनों ने कभी  दरम्यां   मुझे 


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