एक दिन सब कुछ सुन्दर होगा
यक़ीन मानो
शीत और पतझड़ ऋतु का डर
हमारे प्रेम को निर्वस्त्र करेगा
हम बाद में रौशनी में यूँ खड़े होंगे
जैसे कि खिलती लताएँ
गर्वित होकर ओढ़ेंगी ताज
बिना किसी से शर्माए
हमे डरना नहीं अँधेरे में
हमारी राहें रौशन हैं
हमारी गुज़री पीड़ाओं पर
पहरा देता सर्द चाँद है ।
कवि - Kányádi Sándor
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
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