सूखी नदियों की यात्रा
मेरे आँसुओं से कहीं
धूल न जाये तस्वीर तुम्हारी
बहुत देर लगा दी
तमने आने में ,
किस शाख़ से टूटा हुआ फूल
सजा भी न पाई तुम जुड़े में
बिखरा ही दीं तुमने अपनी अलकें
पर यूँ हर मौसम में तो
अच्छा नहीं लगता यह सब
बादल बरस कर गुज़र भी गए
ऊदी ऊदी हवाएँ
आईं भी और लौट भी गयीं
उतरती रही धूप
शाम की जांघ पर
नींद आ ही गयी
थके मांदे सूरज को
पर न आई तुम
बहुत देर लगा दीं तुमने आने में ,
किसे मालूम था
जन्मों के सम्बन्ध
पल में बिखर भी जाते हैं
लोग अपनी ही परछाई से
सिहर भी जाते हैं
संबंधों में आख़िर
आ ही गयी दरार
पर जाने कब और कैसे
मैंने तो सिर्फ किया था प्यार
लेकिन
प्यार कोई रबड़ की गेंद तो नहीं
कि दीवार पर मारें
और वापिस आ जाये
शायद प्यार का अर्थ
हमें मालूम ही नहीं
मुझे तो लगता है
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